Saturday, August 11, 2018

अनुब्रजाम्य्हम नित्यं पूयेयेत्यंघ्रिरेणुभिः। (भागवत 11-14-16)
भगवान पीछे पीछे चलता है भक्तों के, कि उनकी चरण धूलि उड़कर मेरे ऊपर पड़े और मैं पवित्र हो जाऊं। उन चरणों पर आज मुझ अभागे का मस्तक पड़ रहा है। अनंत पाप किये हुए एक नगण्य जीव का, कितना बड़ा सौभाग्य है हमारा !! तो उन चरणों पर अगर सिर को झुका दें, छू लें उन चरणों को फिर वो होश में रहेगा नहीं। उसने समझा ही नहीं उन चरणों का क्या महत्त्व है? हाँ, ठीक है, सब छू रहे हैं तो अपन भी पटक दो। वन परसेंट, टू परसेंट, टेन परसेंट कुछ भावना होगी आप लोगों की, लेकिन प्रणाम माने सेंट परसेंट भावना, बुद्धि का सरेंडर, बुद्धि को दे देना गुरु के चरणों में, इसी का नाम ''शरणागति'' है। यही वास्तविक प्रणाम है........।।
-------जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज।


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