तमाम
धर्म भ्रम में डालने वाले हैं और हमको तो भ्रम मिटाना है ? भ्रम माने
माया, जिसके कारण आनंद प्राप्ति से वंचित हैं। तो केवल पुण्डरीकाक्ष
श्रीकृष्ण में मन का लगाव कर दें। सरेंडर(surrender) कर दें, शरणागत कर दे,
उनकी भक्ति करे, बस।
इसके अतिरिक्त कोई धर्म ही नहीं होता। धर्म माने धारण करने योग्य। बस श्रीकृष्ण को धारण करो, यही धर्म है क्योंकि हम श्रीकृष्ण के दास हैं।
जिसने श्रीकृष्ण की भक्ति की, वह समस्त धर्मों को कर चुका। सारे धर्म उसको नमस्कार करेंगे। उसे कुछ नहीं करना।
------जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज।
इसके अतिरिक्त कोई धर्म ही नहीं होता। धर्म माने धारण करने योग्य। बस श्रीकृष्ण को धारण करो, यही धर्म है क्योंकि हम श्रीकृष्ण के दास हैं।
जिसने श्रीकृष्ण की भक्ति की, वह समस्त धर्मों को कर चुका। सारे धर्म उसको नमस्कार करेंगे। उसे कुछ नहीं करना।
------जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज।
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