ये
आदमी खराब है, ये अच्छा। होगा, ये भी खराब निकला, ये अच्छा होगा, यही
रिहर्सल कर रहे हैं हम लोग अनादि काल से अब तक। फिर भी पक्का नहीं हो सका
कि यहां सब गड़बड़ है। नर्मदा के कंकड़ सब शंकर। ‘कूप में ही यहां भांग
घुली है’ और कोई बुरी बात नहीं है। अरे भाई, जैसे हम भूखे हैं, आनन्दके,
ऐसे ही सब हैं। जैसे हम अपने मतलब के लिए मां बाप बेटा स्त्री पति पड़ौसी
से प्लान बना-बनाकर स्वार्थ सिद्ध करने के चक्कर में रहते हैं, ऐसे ही सब
रहते हैं। समझे रहो। तुम ही अकेले बुद्धिमान हो और नहीं है, क्यों
भूल जाते हो तुम्हारे साथ कोई एक्टिंग कर रहा है और तुम समझते हो, फैक्ट
है। हम तुम्हारे लिये जान दे सकते हैं। देखो उसने कहा था कि हम जान दे सकते
हैं। ऐ! बेवकूफ बना रहा है। जितना अधिक भयानक शब्द। कोई बोलता है, समझ लो,
उतना ही बड़ा वो ठग है, धूर्त है, चार सौ बीस है, उसका बहुत बड़ा स्वार्थ
है। अगर स्वार्थ कम है तो हल्का शब्द ही बोलेगा और स्वार्थ नहीं है तो
नमस्ते ऐसे करता है। एक हाथ से भी होता है नमस्ते आजकल। चले जा रहे हैं-
नमस्ते, क्यों कि वहां स्वार्थ नहीं है। तो हम स्वयं को तो बुद्धिमान मानते
हैं औरों को बेवकूफ मानते हैं। हमने उसको बेवकूफ बनाया। खूब दावत किया,
खूब स्वागत-सत्कार किया वो बेवकूफ बन गया।
-----जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
No comments:
Post a Comment