यह जोरी नीकी जान रे |
यह मन अरु वह मनमोहन दोउ, दीखत एक समान रे |
इत कह मन अति चंचल वाको, वेग वायु बलवान रे |
उत चंचलताहूँ ते चंचल, सुंदर श्याम सुजान रे |
इत कारो मन जनम कोटि के, पापन, संत बखान रे |
उत ‘कृपालु’ कारो हरि पुनि कत, धरत न मन ! उन ध्यान रे ||
यह मन अरु वह मनमोहन दोउ, दीखत एक समान रे |
इत कह मन अति चंचल वाको, वेग वायु बलवान रे |
उत चंचलताहूँ ते चंचल, सुंदर श्याम सुजान रे |
इत कारो मन जनम कोटि के, पापन, संत बखान रे |
उत ‘कृपालु’ कारो हरि पुनि कत, धरत न मन ! उन ध्यान रे ||
भावार्थ - यह युगल जोड़ी कितनी अच्छी है | अरे मन ! तेरी एवं
मनमोहन की सभी बातें एक सी हैं | तेरा भी वेग वायु से बढ़कर है, उधर
श्यामसुन्दर भी चंचलता से भी अधिक चंचल हैं | महापुरुषों के कथनानुसार इधर
तू भी करोड़ों जन्मों के पापों से काला है | ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं कि
उधर श्यामसुन्दर भी काले हैं | फिर भी अरे मन ! तू उन श्यामसुन्दर से
मैत्री क्यों नहीं कर लेता |
( प्रेम रस मदिरा सिद्धान्त - माधुरी )
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
सर्वाधिकार सुरक्षित - राधा गोविन्द समिति
( प्रेम रस मदिरा सिद्धान्त - माधुरी )
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
सर्वाधिकार सुरक्षित - राधा गोविन्द समिति
No comments:
Post a Comment