Saturday, May 11, 2013

साधकों को सावधान करते हुये कहा है ; भगवान् एवं भगवज्जन के कार्य लीला मात्र हैं। लीला रसास्वादन हेतु होती है। बुद्धि का प्रयोग लीला में वर्जित है। भगवान् के सभी नाम , रूप , लीला, गुण , धाम व जन दिव्य हैं। यानी सांसारिक बुद्धि का प्रयोग करने से जीव भ्रम में पड़ जायगा। ' संशयात्मा विनश्यति ' रामावतार में सीता को खोजते हुये , अज्ञात का अभिमान करते हुये श्रीराम को देखकर सती को भ्रम हो गया। वे उन्हें साधारण राजकुमार समझ कर परीक्षा ले बैठीं। परिणाम स्वरूप भगवान् शिव ने उनका परित्याग कर दिया। पुनः पार्वती के रूप में भगवान् शिव के मुख से श्रद्धा पूर्वक रामचरित्र सुना। सती द्वारा संशय किये जाने से संसार को रामचरित्र प्राप्त हुआ। सती ने स्वयं शंका कर संसार को यह दिखाया कि भगवत्लीला में संशय नहीं करना चाहिये।
~~~~~~~जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज~~~~~~~
साधकों को सावधान करते हुये कहा है ; भगवान् एवं भगवज्जन के कार्य लीला मात्र हैं। लीला रसास्वादन हेतु होती है। बुद्धि का प्रयोग लीला में वर्जित है। भगवान् के सभी नाम , रूप , लीला, गुण , धाम व जन दिव्य हैं। यानी सांसारिक बुद्धि का प्रयोग करने से जीव भ्रम में पड़ जायगा। ' संशयात्मा विनश्यति ' रामावतार में सीता को खोजते हुये , अज्ञात का अभिमान करते हुये श्रीराम को देखकर सती को भ्रम हो गया। वे उन्हें साधारण राजकुमार समझ कर परीक्षा ले बैठीं। परिणाम स्वरूप भगवान् शिव ने उनका परित्याग कर दिया। पुनः पार्वती के रूप में भगवान् शिव के मुख से श्रद्धा पूर्वक रामचरित्र सुना। सती द्वारा संशय किये जाने से संसार को रामचरित्र  प्राप्त हुआ। सती ने स्वयं शंका कर संसार को यह दिखाया कि भगवत्लीला में संशय नहीं करना चाहिये। 
~~~~~~~जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज~~~~~~~


 

    No comments:

    Post a Comment