सखि कालि लखी नँदलाल रे |
गई रही कछु काम महरि घर, तहँ खेलत गोपाल रे |
सिर पर वाके मोर चंद्रिका, लट कारी घुंघराल रे |
पीत झँगुलिया झलमल झलकत, हलकत कुंडल गाल रे |
कटि किंकिनि पग पायल बाजति, चलत घुटुरुवनि चाल रे |
... लखतहिं मदन गुपाल सखी मैं, भई हाल बेहाल रे |
जो ‘कृपालु’ सब जगहिं नचावत, नाचत यशुमति ताल रे ||
भावार्थ - एक सखी अपनी अन्तरंग सखी से कहती है, अरी सखी ! कल मैंने बालकृष्ण को देखा | मैं यशोदा मैया के घर कुछ काम से गयी थी | वहाँ वह खेल रहे थे | उनके सिर पर मोर मुकुट सुशोभित था | उनके बाल अत्यन्त घुँघराले थे | उनके शरीर पर पीले रंग की झँगुली झलमला रही थी | उनके कान के कुण्डल गाल पर हिल रहे थे | उनकी कमर में किंकिणि एवं पैर में पायल बज रही थीं | वह घुटनों के बल चल रहे थे | अरी सखी ! उन मदन गोपाल को देखते ही मैं तत्काल पागल सी हो गयी | ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं कि सब से आश्चर्य की बात तो यह है कि जो सारे संसार को अपनी माया से नचाता है उसको भी मैया अपने हाथों की तालियों से नचा रही थी |
( प्रेम रस मदिरा श्री कृष्ण – बाल लीला – माधुरी )
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
सर्वाधिकार सुरक्षित - राधा गोविन्द समिति.
गई रही कछु काम महरि घर, तहँ खेलत गोपाल रे |
सिर पर वाके मोर चंद्रिका, लट कारी घुंघराल रे |
पीत झँगुलिया झलमल झलकत, हलकत कुंडल गाल रे |
कटि किंकिनि पग पायल बाजति, चलत घुटुरुवनि चाल रे |
... लखतहिं मदन गुपाल सखी मैं, भई हाल बेहाल रे |
जो ‘कृपालु’ सब जगहिं नचावत, नाचत यशुमति ताल रे ||
भावार्थ - एक सखी अपनी अन्तरंग सखी से कहती है, अरी सखी ! कल मैंने बालकृष्ण को देखा | मैं यशोदा मैया के घर कुछ काम से गयी थी | वहाँ वह खेल रहे थे | उनके सिर पर मोर मुकुट सुशोभित था | उनके बाल अत्यन्त घुँघराले थे | उनके शरीर पर पीले रंग की झँगुली झलमला रही थी | उनके कान के कुण्डल गाल पर हिल रहे थे | उनकी कमर में किंकिणि एवं पैर में पायल बज रही थीं | वह घुटनों के बल चल रहे थे | अरी सखी ! उन मदन गोपाल को देखते ही मैं तत्काल पागल सी हो गयी | ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं कि सब से आश्चर्य की बात तो यह है कि जो सारे संसार को अपनी माया से नचाता है उसको भी मैया अपने हाथों की तालियों से नचा रही थी |
( प्रेम रस मदिरा श्री कृष्ण – बाल लीला – माधुरी )
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
सर्वाधिकार सुरक्षित - राधा गोविन्द समिति.
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