Monday, January 21, 2013

खरे हरि कुंज-लतान तरे |
सा रे ग म प ध नि सुरन सों पुनि पुनि, मुरलिहिं तान भरे |
तानन श्री वृषभानुलली के, गुनगन गान करे |
करत ललिहिं गुन-गान मूँदि दृग, तिनकोइ ध्यान धरे |
धरत ध्यान देखन कहँ छिन छिन, नैनन प्रान लरे |
...
परत ‘कृपालु’ आन जब प्रानन, तब ही जानि परे ||

भावार्थ - श्री श्यामसुन्दर निकुंज में लताओं के नीचे खड़े हैं | सा रे ग म प ध नि इन सात स्वरों के विविध आरोह-अवरोह के द्वारा बार-बार मुरली बजा रहे हैं एवं उसी मुरली में श्री वृषभानुनन्दिनी राधा के गुणों को गा रहे हैं | उन्हीं का ध्यान भी कर रहे हैं | उन्हीं के ध्यान में अनुरक्त श्यामसुन्दर के नेत्र एवं प्राण परस्पर झगड़ा कर रहे हैं | झगड़ा यह है कि ये दोनों ही, एक दूसरे से प्रथम ही किशोरी जी से मिलना चाहते हैं | ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं जब किसी के ऊपर कोई विपति आ जाती है तभी उसको अनुभव होता है | तात्पर्य यह है कि सनातन आनंदमय ब्रह्म को भी श्री किशोरी जी के वियोग में रोना पड़ता है |


( प्रेम रस मदिरा श्रीकृष्ण – माधुरी )
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
सर्वाधिकार सुरक्षित - राधा गोविन्द समिति.
खरे हरि कुंज-लतान तरे |
सा रे ग म प ध नि सुरन सों पुनि पुनि, मुरलिहिं तान भरे |
तानन श्री वृषभानुलली के, गुनगन गान करे |
करत ललिहिं गुन-गान मूँदि दृग, तिनकोइ ध्यान धरे |
धरत ध्यान देखन कहँ छिन छिन, नैनन प्रान लरे |
परत ‘कृपालु’ आन जब प्रानन, तब ही जानि परे ||


भावार्थ -  श्री श्यामसुन्दर निकुंज में लताओं के नीचे खड़े हैं | सा रे ग म प ध नि इन सात स्वरों के विविध आरोह-अवरोह के द्वारा बार-बार मुरली बजा रहे हैं एवं उसी मुरली में श्री वृषभानुनन्दिनी राधा के गुणों को गा रहे हैं | उन्हीं का ध्यान भी कर रहे हैं | उन्हीं के ध्यान में अनुरक्त श्यामसुन्दर के नेत्र एवं प्राण परस्पर झगड़ा कर रहे हैं | झगड़ा यह है कि ये दोनों ही, एक दूसरे से प्रथम ही किशोरी जी से मिलना चाहते हैं | ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं जब किसी के ऊपर कोई विपति आ जाती है तभी उसको अनुभव होता है | तात्पर्य यह है कि सनातन आनंदमय ब्रह्म को भी श्री किशोरी जी के वियोग में रोना पड़ता है |


( प्रेम रस मदिरा  श्रीकृष्ण  –  माधुरी )
   जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
सर्वाधिकार सुरक्षित - राधा गोविन्द समिति

 
 

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