वास्तविक महापुरुष के सान्निध्य में संसार से सहज वैराग्य एवं भगवान में सहज अनुराग बढ्ने लगता है। तत्वज्ञान परिपक्व होने लगता है। जीव अवश्य महसूस करने लगता है कि वो कल्पना भी नहीं कर सकता था की भगवदविषय में कभी इतना मन लगने लगेगा, इतना समय वो दे पाएगा।
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