श्यामा श्याम शरण गहु रे मन!
युगल माधुरी ध्यान धरे उर, गाउ नाम गुन रहु वृंदावन।
सखीभाव संतन अनुगत ह्वै, प्रेम सुधा पिवु लहु जीवनधन।
ह्वै निष्काम धाम-निष्ठा गहि, गहवर वन विचरहु गोवर्धन।
भरि भरि अंक लतन आनँद जल, झरझर झरि लावहु जनु सावन।
इमि ‘कृपालु’ मदमत रैन दिन, नित नव रस चाखहु मनभावन।।
युगल माधुरी ध्यान धरे उर, गाउ नाम गुन रहु वृंदावन।
सखीभाव संतन अनुगत ह्वै, प्रेम सुधा पिवु लहु जीवनधन।
ह्वै निष्काम धाम-निष्ठा गहि, गहवर वन विचरहु गोवर्धन।
भरि भरि अंक लतन आनँद जल, झरझर झरि लावहु जनु सावन।
इमि ‘कृपालु’ मदमत रैन दिन, नित नव रस चाखहु मनभावन।।
भावार्थ:- अरे मन! तू राधा-कृष्ण के चरण-कमलों की शरण में जा, तथा राधा-कृष्ण का स्वरूप अपने हृदय में रखकर उनके विविध नाम गुणादिकों को प्रेम-विभोर होकर गाता हुआ निरन्तर वृन्दावन में ही निवास कर। गोपी प्रेम प्राप्त सखी भावयुक्त महापुरुषों की शरण होकर उस दिव्य प्रेमामृत का पान कर, जो तेरे जीवन का सर्वस्व है। निष्काम भाव रखते हुए श्री कृष्णधाम में चिन्मय दृष्टि रखकर गह्वरवन एवं गोवर्धन में घूमते हुए विचरण कर। ब्रज की लताओं का बार-बार आलिंगन करके नेत्रों से आनन्द के आँसुओं की श्रावण की तरह झड़ी लगाते हुए वर्षा कर। ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं–इस प्रकार तू प्रेम-रस में उन्मत होकर दिन-रात नित्य-प्रति नवीन-नवीन दिव्य रसों का मनमाना आस्वादन कर।
(प्रेम रस मदिरा:- सिद्धान्त-माधुरी)
#जगद्गुरु_श्री_कृपालु_जी_महाराज।
सर्वाधिकार सुरक्षित:- राधा गोविन्द समिति।
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