Tuesday, September 5, 2017

रसिक जन – धन गोवर्धन धाम |
त्रिगुणातीत दिव्य अति चिन्मय, ब्रज परिकर विश्राम |
मरकत – मणि – मंडित खंडित मद, गिरि सुमेरु अभिराम |
राधाकुंड कुसुम सर आदिक, लीलाधाम ललाम |
मर्दन – मघवा – मद मनमोहन, पूजित पूरनकाम |
सखन सनातन संग श्याम जहँ, विहरत आठों याम |
कब ‘कृपालु’ हौंहूँ बड़भागी, ह्वैहौं बसी अस ठाम ||

भावार्थ – रसिक जनों का सर्वस्व श्री गोवर्धन धाम है जो गुणों से अतीत है एवं दिव्यातिदिव्य चिन्मय तथा ब्रज के निवासियों का विश्राम स्थल है | वह गोवर्धन धाम मरकत मणियों से सुशोभित तथा सुमेरु गिरि ( पर्वत ) के भी मद को मर्दन करने वाला है | वहाँ राधाकुंड, कुसुम सरोवर आदि अनेक मनोहर लीला स्थलियाँ हैं, जो इन्द्र के अभिमान को चूर्ण करने वाला ब्रह्म श्रीकृष्ण से भी पूज्य और कामनाओं से परे हैं | इस गोवर्धन धाम में सनातन गोलोक के श्रीदामा आदि सखाओं के साथ, श्रीकृष्ण सदा ही विविध प्रकार के खेल खेला करते हैं | ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं कि ऐसे दिव्य गोवर्धन धाम में बस कर हम कब परम भाग्यशाली बनेंगे ?
( प्रेम रस मदिरा धाम – माधुरी )
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
सर्वाधिकार सुरक्षित - राधा गोविन्द समिति

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