Tuesday, September 5, 2017

हम लोग छोटी सी चीज को पाने के लिये पहले सोचा,फिर प्लानिंग किया,फिर प्रैक्टिस किया,फिर भी वो काम पूरा हो न हो,डाउट है।अरे देखो चित्रकेतु के एक करोड़ स्त्रियाँ और बच्चा नहीं हुआ। तो एक स्त्री से कोई चैलेन्ज करे कि बच्चा होगा। अरे एक स्त्री से क्या चैलेन्ज कर रहे हो ? सतयुग के हैं चित्रकेतु। लेकिन भगवान् के एरिया में ये बात नहीं। भगवान् ने सोचा कि ये संसार बन गया और उन्होंने ऐसी शक्ति हमको दी है अपने आपसे मिलने के लिये कि बच्चों ! तुम भी सोचो, हम मिल जायेंगे। ऐं सोचने से मिल जाओगे ? हाँ।
मामनुस्मरतश्र्चित्तं मय्येव प्रविलीयते।
( भाग.११-१४-२७ )
केवल सोचो मन से कि वो मेरे हैं,वो मेरे हैं,वो मेरे हैं,वो मेरे अन्दर में हैं,सर्वव्यापक भी हैं,वे गोलोक में भी हैं। ये फेथ(Faith),विश्वास,इसका रिवीजन(Revision)।इसी का नाम साधना। बस सोचो।
----- जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।

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