मायिक
देह काे मैं न मानाे एवं देह संम्बन्धी विषयाें काे मेरा न मानाे। अत: हे
मन! तू आत्मा काे ही मैं मान एवं आत्मा के अंशी माता,पिता,भ्राता,भर्ता
सर्वस्व श्यामसुन्दर काे ही मेरा मान। साथ में यह भी मान कि मैं
श्यामसुन्दर का नित्य दास हूँ। एवं श्यामसुन्दर हमारे स्वामी ही हैं। इस
प्रकार मान लेने पर श्यामसुन्दर बिना किसी साधना के ही कृपा कर देते हैं।
एवं माया समाप्त कर देते है। इतना ही नही वरन् उसके दास बन जाते हैं।
----- जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
----- जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
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