हम
भगवान् के आगे , उनको सामने खड़ा करके, रो कर उनके दर्शन , उनका प्रेम
माँगे बस यही भक्ति। रो कर अकड़ कर नहीं , जैसे कोई पानी में डूबने लगता है
तो वो कितनी व्याकुलता में हाथ पैर उपर करता है , तैरना नहीं जानता
है।जैसे मछली को बाहर दाल दो , कैसे तड़पती है पानी के लिये । ऐसे ही
श्यामसुंदर के मिलन के लिये हमको तड़पना होगा। इस जन्म में अथवा हजार जन्म
बाद फिर। और ये करना पड़ेगा।
-----जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
-----जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
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