सब साधन संपन्न कहँ , पूछत सब संसार |
साधनहीन प्रपन्न कहँ , पूछत नंदकुमार ||३९||
भावार्थ – संसारी लोग उसी से प्यार करते हैं , जिसके पास संसारी वैभव होता है | किन्तु श्यामसुंदर अकिंचन से प्यार करते हैं |
(भक्ति शतक )
जगदगुरु श्री कृपालुजी महाराज द्वारा रचित |
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