नामी का न पाया रस गाया तेरा नामा।
पित्त रोगी को ज्यों मीठा खारा लगे बामा।।
पित्त रोगी को ज्यों मीठा खारा लगे बामा।।
भावार्थः- हे श्रीराधे! यद्यपि मैंने तुम्हारे नाम का अहर्निश गान किया किन्तु नाम में विराजमान नामी का आनन्द मुझे प्राप्त नहीं हुआ। जिस प्रकार पित्त के रोगी को मीठी वस्तु भी खारी प्रतीत होती है उसी प्रकार मुझे तुम्हारे मधुर नाम का रस प्राप्त नहीं हो सका।
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