'कु' का संग त्यागे बिनु गोविन्द राधे।
'सु' का संग होगा नहिं मन को बता दे।।
'सु' का संग होगा नहिं मन को बता दे।।
भावार्थ: मन से या तो भगवान व महापुरुष का सु-संग किया जा सकता है अथवा मायिक जनों का कु-संग। कोई भी उभय मार्गगामी नहीं हो सकता। एक की प्राप्ति हेतु दूसरे का सम्पूर्ण त्याग अनिवार्य है।
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