दूसरे के दोष न देखो,परनिंदा न करो। दूसरों को सुधारने के लिये भी उनके दोष न देखो। भगवतप्राप्ति से पहले ऐसा कौन है जो दोषरहित हो। अरे! कोई न कोई दोष तो हर किसी में विध्यमान है ही। सभी माया के अंडर में हैं,सभी दोषी हैं। तुम लोगों को दूसरों की तो बड़ी भारी फिक्र है लेकिन स्वयं का तुम्हारा क्या होगा,इसकी फिक्र क्यों नहीं करते हो।
-------जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
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