अगर उसकी डांट पर,उसके समझाने पर,उसके दोष निकालने पर,जीव विभोर हो जाता है,रोम-रोम से,तो समझ लो,उसका कल्याण हो गया।लेकिन जब तक विभोर नहीं होता है वो,समझ लो कि वह शरणागत है ही नहीं। वह धोखे में है,वह समझता है कि मैंने प्रणाम कर लिया है,चरणामृत ले लिया है,आरती कर लिया है तो मैं गुरु जी के शरणागत हो गया। यह सब बहिरंग क्रियायें है। मन-बुद्धि की शरणागति से ही काम बनेगा।
-----जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
-----जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
No comments:
Post a Comment