संसार के कार्य करते हुए भी बीच-बीच में बारंबार 'भगवान मेरे सामने हैं' इस प्रकार रूपध्यान द्वारा निश्चय करते रहना चाहिये। इससे दो लाभ हैं - एक तो रूपध्यान परिपक्व होगा, दूसरे हम, भगवान को अपने समक्ष, साक्षात रूप से महसूस करते हुए उच्छृंक्ल न हो सकेंगे, जिसके परिणाम स्वरूप अपराधों से बचे रहेंगे। जीव तो, किंचित भी स्वतंत्र हुआ कि बस, वह धारा-प्रवाह रूप से संसार की ही ओर भागने लगेगा।
------जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
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