जो जिस भाव से जितनी मात्रा में शरणागत होता है बस मैं उसको उतनी ही मात्रा में अपनापन , प्यार , कृपा , स्प्रिचुअल पावर देता हूँ। पूरा चाहते हो तो पूरी शरणागति , अधूरा चाहते हो तो अधूरी शरणागति कर लो। बिल्कुल नहीं चाहते तो शरीर को पटकते जाओ, मन संसार में आसक्त रहे , ऐसा कर लो। तुम्हें जो फल चाहिये वैसा ही कर्म करो।
---जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
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