●जगद्गुरुत्तम् श्री कृपालु जी के श्रीमुख से●
दुर्वासा चिल्ला रहे हैं सारे देश में चौराहे पर खड़े हो करके, मुझे कोई गुरु बना लो, मेरा कोई चेला बन जाओ। लेकिन याद रखो अगर चेला बनने के बाद सेवा में कोई गड़बड़ हुई तो खैरियत नहीं होगी यह नारा लग रहा है। अब दुर्वासा का नाम सब जानते थे कि बड़े भारी महापुरुष हैं सबको पता है । बड़ी पॉवर है। गली - गली में विख्यात हैं। लेकिन जो वर्ना कह दिया कि अगर किसी ने सेवा में गड़बड़ी की उसने कहा भैया बिना गुरु के ही ठीक है । क्योंकि सेवा में गड़बड़ हो ही जायगी, संसारी जीव कौन सेवा का दावा कर सकता है ।
अस्तु दुर्वासा के नारा लगाने पर एक भी तैयार नही हुआ शिष्य बनने को । तो दुर्वासा गये द्वारिका । द्वारिका में सब महापुरुष ही महापुरुष हैं और भगवान् तो हैं ही हैं । उनकी सारी बीबियाँ सब महापुरुष ही हैं और माया का सवाल ही पैदा नहीं होता, लेकिन वहाँ भी अगर सेवा में गड़बड़ की तो दण्ड मिलेगा । जब ये वाक्य सुना लोगों ने कहा भई ठीक है ठीक है, आप आगे जाइये और कोई चेला ढूढिये । श्रीकृष्ण ने सुना एक दूत ने आकर बताया कि सरकार एक ऐसा-ऐसा फकीर आया है वो ऐसे चिल्ला रहा है। और कहता है हमारा नाम दुर्वासा है । तो उन्होंने कहा - अरे बुला लाओ , बुला लाओ । हम शिष्य बनेंगे उनके।
एक शिष्य बनने को तैयार हुए । वह जगद्गुरु श्रीकृष्ण आज शिष्य बनने जा रहे हैं । दुर्वासा के । और कौन हिम्मत करे ? ले आये महल में ठहरा दिया और पच्चीस - पचास लड़कियां सेवा में कर दिया दिया दुर्वासा के । बड़ी एक्सपर्ट लडकियाँ जो थीं सेवा में स्पेशल क्लास की । तो दुर्वासा ने कहा कि भई मैं तो खीर खाऊँगा । तो रुक्मिणी ने कहा ये कैसे बाबा जी हैं ? अरे बाबा जो कोई आता है तो उसको जो मिल जाय खा लेना चाहिये । मैं खीर खाऊंगा , हलुआ खाऊंगा । हाँ । पहले ही पहले । कोई बेतकल्लुफी हो जाय घर में , किसी गृहस्थी के घर तो बाबा जी लोग कुछ कह भी देते हैं और वह इस बहाने से कहते हैं कि आज तो हमारे गोपाल जी तस्मई खायेंगे । वह जो पत्थर के गोपाल जी लिये रहते हैं न उन्ही को बहाना ले लेकर के बाबा लोग खूब मालटाल खाते हैं । आप लोगों में से शायद किसी को अनुभव हो और वैसे भी बेतकल्लुफी हो जाने पर संसार में लोग कह देते हैं , लेकिन पहली बार में ऐसी बात करें ए ए श्रीकृष्ण ! मैं खीर खाऊँगा । हाँ महाराज जी ! जैसी आज्ञा । रुक्मिणी खीर लाओ । महालक्ष्मी की अवतार वहाँ क्या कमी है ? वहाँ कौन सा प्रश्न है आज चीनी नहीं है , आज दूध नहीं है , जरा दस मिनट रुक जाओ , ये सब सवाल नहीं है । ए खीर ! ए खीर आ गयी । सब सिद्धियाँ वहाँ नौकरानी हैं रुक्मिणी की । एक आध गस्सा खाया वाया और श्रीकृष्ण से कहा ए इस खीर को पोत लो अपने शरीर में । रुक्मिणी देख रही हैं कि क्या बाबा हैं और इनका दिमांग खराब है कि चुपचाप सुने जा रहे हैं सब । हाँ । सारे शरीर में श्रीकृष्ण ने अपने पोत दिया खीर। उसके बाद कहा - ये रुक्मिणी इधर आ । रुक्मिणी ने कहा मेरी भी शामत आई है बाबा हमको भी बुला रहा है । हाँ । अरे भई ये तो पुरुष हैं ठीक हैं । इनको कुछ भी बुलावें , हमको क्यों बुला रहे हैं बाबा जी । बैठाया और खीर अपने हाँथ से ले के उसके सारे शरीर में पोता रुक्मिणी के । अब बिचारी संकोच कर रही है स्त्री शरीर है । ठीक है श्रीकृष्ण चुप हैं तो बेचारी वह क्या बोले ? उसके बाद गये अपने जिस महल में ठहरे थे उसमें आग लगा दिया । वो जलने लगा । सब नौकरानियाँ भागीं । अरे वो पागल बाबा आया है उसने आग लगा दिया ( हंसी ) लेकिन अब श्रीकृष्ण से कौन बोले ठीक है भई वह कहते हैं हम गुरु बनायेंगे तो कौन बोले नौकर चाकर की हिम्मत क्या । अरे कृष्ण जरा मैं घूमने चलूँगा रथ तैयार करो । देखो रथ में घोड़े नहीं रहेंगे एक तरफ तुम , एक तरफ रुक्मिणी । रुक्मिणी ने कहा और लो , जो कसर है बाकी , पूरी हो गयी । अब घोड़ा बनना पड़ेगा हमको । और बैठ गये ठाठ से रथ के ऊपर , कोड़ा लेकर हाँथ में चाबुक और रथ लेकर चले दोनों , लेकिन रुक्मिणी तो कमजोर पड़ती थी बेचारी , अरे सोचो महालक्ष्मी की अवतार , इतनी कोमलांगी जो कमलासन कहलाती हैं कमल के ऊपर उनके चरण का निचला भाग रहता है हमेशा कमल की पंखुड़ियों के ऊपर । वह रथ लेकर चले नंगे पाँव , चप्पल नहीं पहन सकते गुरु को ले जाना है चप्पल वप्पल नहीं चलेगा , तो कुछ दूर चली उसके बाद कन्धा उनका यों यों होने लगा नीचे । जब एक तरफ का बैल गड़बड़ करे तो दूसरी तरफ का बैल क्या करेगा अकेला ? तो चाबुक मारा रुक्मिणी को । और श्रीकृष्ण अपना चुपचाप बड़े विभोर हो रहे हैं ( हंसी ) श्रीकृष्ण ने कहा - महाराज ! ये शिष्य नहीं बन सकती , मैं अकेला रथ ले चलूँगा आपका । बताइए कितनी स्पीड में ले चलूँ और कहाँ ले चलूँ ? किस लोक में ? तो देखा दुर्वासा ने और कहा कि हाँ ठीक है , ठीक है , तू पास हो गया । कहीं जाना वाना हमको नहीं था । ये सब विपरीत व्यवहार मेरी एक्टिंग थी ! जा तू पास हो गया । लेकिन तूने एक गलती किया है । हैं महाराज ! हमसे भी गलती हो गयी ? हाँ हो गयी । क्या गलती किया महाराज ! हमने कहा था सारे शरीर में खीर पोत लेना तुमने तलवे में नहीं पोता , उसी तलवे में तेरे बाण लगेगा , अन्तिम समय में । तूने मेरी आज्ञा पूरी - पूरी नहीं मानी । सारे शरीर में प्रत्येक अंग में खीर पोता , तलवे में नहीं पोता । यह बता रहा हूँ जो वेद की कथा है । कोई कहानी वहानी यहाँ वहाँ की नहीं है । सत्य कथा बता रहा हूँ ।
तो ये विपरीत व्यवहार करते हैं महापुरुष लोग । प्राचीन काल में तो नाइंटी नाइन परसेंट यही हुआ करता था लेकिन अब इस युग में तुलसी , सूर , मीरा , कबीर , नानक तुकाराम तमाम संत हुए उन्होंने समय - समय पर किया , ज्यादा नहीं किया क्योंकि जीव कल्याण करने के लिए सोचना पड़ता है कि भई इनकी योग्यता ऐसी नहीं है सहन करने की । कभी - कभी मूड में आ जाने पर कर देते हैं । थोड़ा समझने के लिए कि भई कुछ थ्योरी समझता भी है कि नहीं ये । खाली सिर हिलाता है लेक्चर में बैठकर ये ।
----- जगद्गुरुत्तम् श्री कृपालु जी महाराज।
दुर्वासा चिल्ला रहे हैं सारे देश में चौराहे पर खड़े हो करके, मुझे कोई गुरु बना लो, मेरा कोई चेला बन जाओ। लेकिन याद रखो अगर चेला बनने के बाद सेवा में कोई गड़बड़ हुई तो खैरियत नहीं होगी यह नारा लग रहा है। अब दुर्वासा का नाम सब जानते थे कि बड़े भारी महापुरुष हैं सबको पता है । बड़ी पॉवर है। गली - गली में विख्यात हैं। लेकिन जो वर्ना कह दिया कि अगर किसी ने सेवा में गड़बड़ी की उसने कहा भैया बिना गुरु के ही ठीक है । क्योंकि सेवा में गड़बड़ हो ही जायगी, संसारी जीव कौन सेवा का दावा कर सकता है ।
अस्तु दुर्वासा के नारा लगाने पर एक भी तैयार नही हुआ शिष्य बनने को । तो दुर्वासा गये द्वारिका । द्वारिका में सब महापुरुष ही महापुरुष हैं और भगवान् तो हैं ही हैं । उनकी सारी बीबियाँ सब महापुरुष ही हैं और माया का सवाल ही पैदा नहीं होता, लेकिन वहाँ भी अगर सेवा में गड़बड़ की तो दण्ड मिलेगा । जब ये वाक्य सुना लोगों ने कहा भई ठीक है ठीक है, आप आगे जाइये और कोई चेला ढूढिये । श्रीकृष्ण ने सुना एक दूत ने आकर बताया कि सरकार एक ऐसा-ऐसा फकीर आया है वो ऐसे चिल्ला रहा है। और कहता है हमारा नाम दुर्वासा है । तो उन्होंने कहा - अरे बुला लाओ , बुला लाओ । हम शिष्य बनेंगे उनके।
एक शिष्य बनने को तैयार हुए । वह जगद्गुरु श्रीकृष्ण आज शिष्य बनने जा रहे हैं । दुर्वासा के । और कौन हिम्मत करे ? ले आये महल में ठहरा दिया और पच्चीस - पचास लड़कियां सेवा में कर दिया दिया दुर्वासा के । बड़ी एक्सपर्ट लडकियाँ जो थीं सेवा में स्पेशल क्लास की । तो दुर्वासा ने कहा कि भई मैं तो खीर खाऊँगा । तो रुक्मिणी ने कहा ये कैसे बाबा जी हैं ? अरे बाबा जो कोई आता है तो उसको जो मिल जाय खा लेना चाहिये । मैं खीर खाऊंगा , हलुआ खाऊंगा । हाँ । पहले ही पहले । कोई बेतकल्लुफी हो जाय घर में , किसी गृहस्थी के घर तो बाबा जी लोग कुछ कह भी देते हैं और वह इस बहाने से कहते हैं कि आज तो हमारे गोपाल जी तस्मई खायेंगे । वह जो पत्थर के गोपाल जी लिये रहते हैं न उन्ही को बहाना ले लेकर के बाबा लोग खूब मालटाल खाते हैं । आप लोगों में से शायद किसी को अनुभव हो और वैसे भी बेतकल्लुफी हो जाने पर संसार में लोग कह देते हैं , लेकिन पहली बार में ऐसी बात करें ए ए श्रीकृष्ण ! मैं खीर खाऊँगा । हाँ महाराज जी ! जैसी आज्ञा । रुक्मिणी खीर लाओ । महालक्ष्मी की अवतार वहाँ क्या कमी है ? वहाँ कौन सा प्रश्न है आज चीनी नहीं है , आज दूध नहीं है , जरा दस मिनट रुक जाओ , ये सब सवाल नहीं है । ए खीर ! ए खीर आ गयी । सब सिद्धियाँ वहाँ नौकरानी हैं रुक्मिणी की । एक आध गस्सा खाया वाया और श्रीकृष्ण से कहा ए इस खीर को पोत लो अपने शरीर में । रुक्मिणी देख रही हैं कि क्या बाबा हैं और इनका दिमांग खराब है कि चुपचाप सुने जा रहे हैं सब । हाँ । सारे शरीर में श्रीकृष्ण ने अपने पोत दिया खीर। उसके बाद कहा - ये रुक्मिणी इधर आ । रुक्मिणी ने कहा मेरी भी शामत आई है बाबा हमको भी बुला रहा है । हाँ । अरे भई ये तो पुरुष हैं ठीक हैं । इनको कुछ भी बुलावें , हमको क्यों बुला रहे हैं बाबा जी । बैठाया और खीर अपने हाँथ से ले के उसके सारे शरीर में पोता रुक्मिणी के । अब बिचारी संकोच कर रही है स्त्री शरीर है । ठीक है श्रीकृष्ण चुप हैं तो बेचारी वह क्या बोले ? उसके बाद गये अपने जिस महल में ठहरे थे उसमें आग लगा दिया । वो जलने लगा । सब नौकरानियाँ भागीं । अरे वो पागल बाबा आया है उसने आग लगा दिया ( हंसी ) लेकिन अब श्रीकृष्ण से कौन बोले ठीक है भई वह कहते हैं हम गुरु बनायेंगे तो कौन बोले नौकर चाकर की हिम्मत क्या । अरे कृष्ण जरा मैं घूमने चलूँगा रथ तैयार करो । देखो रथ में घोड़े नहीं रहेंगे एक तरफ तुम , एक तरफ रुक्मिणी । रुक्मिणी ने कहा और लो , जो कसर है बाकी , पूरी हो गयी । अब घोड़ा बनना पड़ेगा हमको । और बैठ गये ठाठ से रथ के ऊपर , कोड़ा लेकर हाँथ में चाबुक और रथ लेकर चले दोनों , लेकिन रुक्मिणी तो कमजोर पड़ती थी बेचारी , अरे सोचो महालक्ष्मी की अवतार , इतनी कोमलांगी जो कमलासन कहलाती हैं कमल के ऊपर उनके चरण का निचला भाग रहता है हमेशा कमल की पंखुड़ियों के ऊपर । वह रथ लेकर चले नंगे पाँव , चप्पल नहीं पहन सकते गुरु को ले जाना है चप्पल वप्पल नहीं चलेगा , तो कुछ दूर चली उसके बाद कन्धा उनका यों यों होने लगा नीचे । जब एक तरफ का बैल गड़बड़ करे तो दूसरी तरफ का बैल क्या करेगा अकेला ? तो चाबुक मारा रुक्मिणी को । और श्रीकृष्ण अपना चुपचाप बड़े विभोर हो रहे हैं ( हंसी ) श्रीकृष्ण ने कहा - महाराज ! ये शिष्य नहीं बन सकती , मैं अकेला रथ ले चलूँगा आपका । बताइए कितनी स्पीड में ले चलूँ और कहाँ ले चलूँ ? किस लोक में ? तो देखा दुर्वासा ने और कहा कि हाँ ठीक है , ठीक है , तू पास हो गया । कहीं जाना वाना हमको नहीं था । ये सब विपरीत व्यवहार मेरी एक्टिंग थी ! जा तू पास हो गया । लेकिन तूने एक गलती किया है । हैं महाराज ! हमसे भी गलती हो गयी ? हाँ हो गयी । क्या गलती किया महाराज ! हमने कहा था सारे शरीर में खीर पोत लेना तुमने तलवे में नहीं पोता , उसी तलवे में तेरे बाण लगेगा , अन्तिम समय में । तूने मेरी आज्ञा पूरी - पूरी नहीं मानी । सारे शरीर में प्रत्येक अंग में खीर पोता , तलवे में नहीं पोता । यह बता रहा हूँ जो वेद की कथा है । कोई कहानी वहानी यहाँ वहाँ की नहीं है । सत्य कथा बता रहा हूँ ।
तो ये विपरीत व्यवहार करते हैं महापुरुष लोग । प्राचीन काल में तो नाइंटी नाइन परसेंट यही हुआ करता था लेकिन अब इस युग में तुलसी , सूर , मीरा , कबीर , नानक तुकाराम तमाम संत हुए उन्होंने समय - समय पर किया , ज्यादा नहीं किया क्योंकि जीव कल्याण करने के लिए सोचना पड़ता है कि भई इनकी योग्यता ऐसी नहीं है सहन करने की । कभी - कभी मूड में आ जाने पर कर देते हैं । थोड़ा समझने के लिए कि भई कुछ थ्योरी समझता भी है कि नहीं ये । खाली सिर हिलाता है लेक्चर में बैठकर ये ।
----- जगद्गुरुत्तम् श्री कृपालु जी महाराज।
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