जो
राधा भाव के साक्षात मूर्तिमान स्वरूप हैं,जो स्वयं महाभाव हैं,जिन के
रोम-रोम से श्री कृष्ण प्रेम रस सदा टपकता रहता है,जिन के दिव्य वचन सुनते
ही माया अविद्या का जाल सदा-सदा के लिये नष्ट हो जाता है,जो स्वयं प्रेम के
सगुण साकार रूप हैं,जिन के अंदर-बाहर श्री कृष्ण प्रेम लबालब भरा है,जो इस
धरा पे कृष्ण प्रेम दान करने के लिये अवतरित हुए हैं,ऐसे सहेज सनेही
सद्गुरुदेव जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाप्रभु के चरण-कमलों पर बार-बार
बलिहार जाने को जी चाहता है।
जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाप्रभु की जय।
जय-जय श्री राधे।
जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाप्रभु की जय।
जय-जय श्री राधे।
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