हमारे
स्वार्थ के द्रष्टिकोण से गुरु का ही स्थान ऊँचा है। भगवान् तो हमें
प्रारम्भ में मिलेंगे नहीं। हमको ए . बी . सी . डी गुरु ही पढ़ायेगा। गुरु
ही साधना करायेगा। हम उसके प्रति दुर्भावना भी करते हैं तो भी वो सहन करके
मुस्कुराता रहता है। अभी बच्चा है , ज्ञान हो जायेगा तो ठीक हो जायेगा। वो
हमारे पीछे पड़ा रहता है। जब हमारा अंतःकरण शुद्ध हो जायेगा। तो फिर वही
गुरु ही उसको दिव्य बनायेगा स्वरूप शक्ति के द्वारा। फिर वही गुरु भगवान्
से मिलायेगा। अतः यधपि हरि गुरु एक ही हैं किन्तु -
प्रथम नमन गुरुवर पुनि गिरिधर।
--------जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाप्रभु।
प्रथम नमन गुरुवर पुनि गिरिधर।
--------जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाप्रभु।
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