#शरणागति का अर्थ है कुछ न करना। मन, बुद्धि का समर्पण ही शरणागति है।
जब हम कोई भी कर्म करते हैं, तो हम सोचते हैं, कि ये कर्म हमने किया है, किन्तु जब हम भगवान् की शरणागति की ओर बढ़ते हैं, तब हम ये सोचना प्रारम्भ करते हैं, कि सब कुछ करने वाला भगवान् है और जब हमें इस बात पर दृढ़ विश्वास हो जायेगा कि सब कुछ करने वाला भगवान् है, तो हमारा सोचना, करना सब बन्द हो जायेगा और हम कर्तापन के अभिमान से मुक्त हो जायेंगे और हमारा सब काम बन जायेगा। जैसे कबीरदास जी ने कहा था, ‘जो करे सो हरि करे, रहे कबीर, कबीर‘।
जब हम कोई भी कर्म करते हैं, तो हम सोचते हैं, कि ये कर्म हमने किया है, किन्तु जब हम भगवान् की शरणागति की ओर बढ़ते हैं, तब हम ये सोचना प्रारम्भ करते हैं, कि सब कुछ करने वाला भगवान् है और जब हमें इस बात पर दृढ़ विश्वास हो जायेगा कि सब कुछ करने वाला भगवान् है, तो हमारा सोचना, करना सब बन्द हो जायेगा और हम कर्तापन के अभिमान से मुक्त हो जायेंगे और हमारा सब काम बन जायेगा। जैसे कबीरदास जी ने कहा था, ‘जो करे सो हरि करे, रहे कबीर, कबीर‘।
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