Saturday, May 6, 2017

संत पाकर भी यदि जीवन भगवन्मय नही बन रहा है तो दो ही बाते हो सकती हैं , या तो आप जिसको संत मानते है वो संत ही नही है या आप भगवत्क्षेत्र में जाना ही नही चाहते (पूरी लगन के साथ) ।
यूँ समझिए या तो पारस नकली है या हमने आज तक उसका (मन-बुध्दि से पूर्ण समर्पणयुक्त) सही से स्पर्श ही नही किया ।
संत को पाकर भी हम उसका मूल्य नही समझ पाते है तथा अधिकांश लोग इसीलिए चूक जाते है, यदा-कदा जो कुछ महत्व समझते भी है वे लोग लापरवाही/टालमटोल (फिर कर लेंगे, बुढ़ापे में तो करना ही है आदि) करके सब गुड़-गोबर कर लेते हैं ।
----जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ।

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