जगत
की प्राप्ति जीव का लक्ष्य नहीं हैं। जीव भगवान् का अंश है अतः अपने अंशी
को प्राप्त कर ही आत्मा की शांति को प्राप्त कर सकता है। इस प्रकार का
वास्तविक विवेक गुरु की कृपा से ही प्राप्त होता है। ऐसा विवेक जाग्रत करने
वाले गुरु को अपने करोड़ों प्राण देकर भी कोई उनके ऋण से उऋण होना चाहे तो
यह जीव का मिथ्या अभिमान है।
..........जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
..........जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
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