Sunday, August 19, 2012

MERE 'KRIPALU' BHAGWAN............

हमारे परमपूजनीय श्री महाराजजी (जगद्गुरुत्तम भगवान श्री कृपालुजी महाराज) तो कृपा की मूर्ति ही हैं। यानि अंदर बाहर सर्वत्र कृपा ही कृपा है। यही उनका वास्तविक स्वरूप है। 'कृपालु' का अर्थ ही है कृपा लूटाने वाला। कोई दुर्भावना से आए सदभावना से उनके पास आये वे सब पर कृपा ही करते हैं। ऐसा प्रतीत होता है जैसे कि गुरुवर का तन मन सब कृपा का ही बना हुआ है। सोते जागते उठते बैठते उनका एक ही काम है जीवों पर कृपा करना। उनका तन,मन सब कृपा ही कृपा का बना हुआ है, वे बिना कृपा किये रह ही नहीं सकते। लेकिन हम जिस दिन उन्हें सेंट-परसेंट 'कृपालु' मान लेंगे बस हमारा काम बन जायेगा।

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