राग और द्वेष दो ही एरिया हैं सारे संसार में,बाँधे हुए है हम सबको। तो राग करना है तो बस हरि से और द्वेष करना है तो काम से क्रोध से लोभ से ईर्ष्या से द्वेष से करो। ये आने न पावें, हमारे हृदय को गंदा न करने पांवे। हमारी वह पूँजी है। हम जो कमाते हैं ,एक बार भी जो भगवान् का नाम लेते हैं,ये हमारी कमाई है। इसमें गड़बड़ न करे कोई।
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