Sunday, September 23, 2018

युगलवर, निरतत कुंज मझार।
देखति ललितादिक सखियन सब, पुनि–पुनि कहि बलिहार।
आजु होड़ परि गई निरत महँ, युगल नवल सरकार।
विविध अंग बहु भेद संग दोउ, हाव–भाव–विस्तार।
निरतत गति अविराम गौर–हरि, हार–जीत उर धार।
तब ललिता सखि उठि कह ‘बस करु, नाचत दोउ इकसार’।
दोउ ‘कृपालु’ कह ‘पक्षपात यह, ये गईं, ये गये हार’ ।।
भावार्थ:–युगल सरकार कुंज में नृत्य कर रहे हैं। ललितादिक सखियाँ बार–बार बलिहार! बलिहार! कह–कहकर विभोर हो रही हैं। आज नृत्य में श्यामा–श्याम में परस्पर होड़ पड़ गयी है। दोनों ही अनेक अंगों के अनेक भेदों द्वारा अनेक हाव–भाव दिखा रहे हैं। अपनी–अपनी विजय कामना से श्यामा श्याम अविराम गति से नृत्य कर रहे हैं। तब ललिता सखि ने कहा–अब युगल सरकार नृत्य बन्द कर दें, दोनों ही एक समान नाचते हैं। ‘श्री कृपालु जी’ के शब्दों में दोनों ने ही ललिता के न्याय को पक्षपातपूर्ण बताया और एक दूसरे के प्रति यह कहा–“हम जीत गये, ये हार गयीं”। “हम जीत गयीं, ये हार गये।”

(प्रेम रस मदिरा:-निकुंज–माधुरी)
#जगद्गुरु_श्री_कृपालु_जी_महाराज
सर्वाधिकार सुरक्षित:-राधा गोविन्द समिति।

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