हे
मन ! मैं तुमको अनन्य प्रेम का सिद्धांत समझाता हूँ, ध्यान देकर सुनो ।
श्यामा - श्याम का अनन्य प्रेमी केवल श्यामा - श्याम एवं उनके परिकर (सेवक)
रसिक - जनों के सिवाय अन्यत्र कहीं भी, स्वप्न में भी, अपना सम्बन्ध नहीं
जोड़ता । संसार के सुख, मोक्ष सुख एवं बैकुण्ठ आदि लोकों के सुखों से सर्वथा
परे रहता है, अर्थात् बैकुण्ठ पर्यन्त के किसी भी सुख के चक्कर में नहीं
पड़ता । इन सब सुखों को जीतकर वह अनन्य भाव ग्रहण करता है । राधा - कृष्ण के
परिकर रसिक - जनों को छोड़कर बैकुंठ के स्वामी महाविष्णु को भूलकर भी मित्र
नहीं बनाता । कर्तव्य, अकर्तव्य एवं लौकिक, वैदिक आज्ञाओं से भी अनन्य
प्रेमी थोड़ा भी भयभीत नहीं होता । ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं कि अनन्य
प्रेमी के रोम - रोम मं एकमात्र राधा - कृष्ण एवं राधा - कृष्ण प्रेमियों
का पूर्ण विश्वास रहता है।
----जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
----जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
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