साधुओं
का शरीर ही तीर्थ स्वरूप है,उनके दर्शन से ही पुण्य होता है। साधुओं और
तीर्थों में एक बड़ा भारी अंतर है ,तीर्थों में जाने का फल तो कालान्तर में
मिलता है किन्तु साधुओं के समागम का फल तत्काल ही मिल जाता है। अत: सच्चे
साधुओं का सत्संग तो बहुत दूर की बात है ,उनका दर्शन ही कोटि तीर्थों से
अधिक होता है।
------सुश्री श्रीधरी दीदी (प्रचारिका),जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
------सुश्री श्रीधरी दीदी (प्रचारिका),जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
No comments:
Post a Comment