कृपालु गुरुवर हैं रखवार हमारों......!!!!!
हमारे कृपालु गुरुवर तो जीव की शरणागति के अनुसार ही योगक्षेम वहन करने लगते हैं।भिन्न-भिन्न तरीकों से श्री गुरुदेव कृपा करते ही रहते हैं जिससे जीव का अंत:करण शुद्ध हो,वह अनुग्रह समझने लगे एवं निश्चयात्मक बुद्धि से सदा के लिए शरणागत हो जाये।अंत:करण पात्र पावन करने में जीव को गुरुदेव के साथ सहयोग करना ही पड़ेगा।
गुरुदेव अपने जन को अपना सत्संग एवं प्रथम दर्शन देने से पहले उसे परखते रहते हैं। प्रथम मिलन दर्शन एवं सत्संग गुरु का जीव पर सबसे बड़ा अनुग्रह है।उसके उपरांत जीव पर गुरु को बहुत कठिन परिश्रम करना पड़ता है,तब जाकर जीव धीरे-धीरे शरणागति की ओर उन्मुख होता है। जीव के अनुरूप ही उसके प्रश्न होते हैं और उसी के अनुरूप जिसको वो समझ सके गुरुदेव के उत्तर होते हैं।कब कहाँ किसके लिए क्या उपयुक्त है गुरुवर ही जानते हैं।जीव का भगवान में अनुराग कैसे हो और जगत से कैसे वैराग्य कैसे हो,यह सब अनुग्रह गुरुदेव ही करते हैं।वे जीव की क्लास में जाकर उसके शंका समाधान करते हैं।
गुरुदेव से प्रथम मिलन एवं सत्संग में कोई देखते ही होश खो बैठा,कोई आठ-दस दिन तक सतत रोता रहा कोई गुरुदेव का सत्संग छोड़ के पुन: अपने संसार में जाना ही नहीं चाहता है।अपवाद स्वरूप ऐसे भी व्यक्ति हैं जिन्हे प्रारम्भ में अच्छा नहीं लगा किन्तु वे आज 'राधे' नाम सुनते ही बेचैन हो जाते हैं और अब पूर्ण रूप से सत्संग में हैं।श्री महाराजजी किसी ग्रहस्थ को जब तक उसका सांसरिक कर्तव्य(बीवी,बच्चों) आदि का शेष रेहता है संसार कदापि त्यागने नहीं देते हैं।वरन उस व्यक्ति के सत्संग से परिवार के अन्य सदस्य का भी हरि-गुरु में अनुराग होने लगता है।भगवद मार्ग में अग्रसर अविवाहित व्यक्ति गुरु सत्संग में परा विद्या के विषय में तो जानकारी प्राप्त करता ही है,गुरु कृपा से जगत में भी उच्च कोटि की शिक्षा प्राप्त कर स्वावलंबी एवं सक्षम बन जाता है।किसी व्यक्ति को गुरुधाम में वास मिल भी जाये तो यहाँ उसे लगातार कठिन वातावरण में परीक्षाओं का सामना करना पड़ता है। जब वह जगत वैराग्य एवं भगवद अनुराग में दृढ़ निश्चयी होता है तब यहाँ टिक पाता है। बार-बार अनुरोध करने पर भी गुरु सेवा हर किसी को उपलब्ध नहीं है।
श्री महाराजजी अथवा उनके अति-विद्वान प्रचारकों का प्रवचन सुनने कोई क्यों गया? अथवा किसी को भी श्री महाराजजी के रचित पद,साहित्य बिना मिले ही कैसे प्राप्त हुआ,पढ़ने सुनने को मिला,उनका प्रथम दर्शन कैसे प्राप्त हुआ? यदि हमारे गुरुदेव के सत्संगीयो से पूछा जाये तो सबके अपने-अपने विलक्षण विचित्र किन्तु कल्याणकारी अनुभव हैं।परंतु सब एक मत से स्वीकार करते हैं की अचानक उनकी कृपा से ही उनके दर्शन कर सके,उन तक पहुच पाये,सब पर अकारण कृपा ही हुई,ऐसे बनाव स्वयं बन गए,ऐसा वातावरण उपस्थित कर दिया गया गुरु द्वारा की सभी किसी न किसी बहाने से आकर्षित होकर उन तक पहुँच ही गये।हमारे कृपालु रखवार सदा जीव को परखते रहते हैं एवं उचित अवसर देख कर तत्काल जिज्ञासु मनुष्यों को अपना सत्संग प्रदान कर देते हैं।
हमारे कृपालु गुरुवर तो जीव की शरणागति के अनुसार ही योगक्षेम वहन करने लगते हैं।भिन्न-भिन्न तरीकों से श्री गुरुदेव कृपा करते ही रहते हैं जिससे जीव का अंत:करण शुद्ध हो,वह अनुग्रह समझने लगे एवं निश्चयात्मक बुद्धि से सदा के लिए शरणागत हो जाये।अंत:करण पात्र पावन करने में जीव को गुरुदेव के साथ सहयोग करना ही पड़ेगा।
गुरुदेव अपने जन को अपना सत्संग एवं प्रथम दर्शन देने से पहले उसे परखते रहते हैं। प्रथम मिलन दर्शन एवं सत्संग गुरु का जीव पर सबसे बड़ा अनुग्रह है।उसके उपरांत जीव पर गुरु को बहुत कठिन परिश्रम करना पड़ता है,तब जाकर जीव धीरे-धीरे शरणागति की ओर उन्मुख होता है। जीव के अनुरूप ही उसके प्रश्न होते हैं और उसी के अनुरूप जिसको वो समझ सके गुरुदेव के उत्तर होते हैं।कब कहाँ किसके लिए क्या उपयुक्त है गुरुवर ही जानते हैं।जीव का भगवान में अनुराग कैसे हो और जगत से कैसे वैराग्य कैसे हो,यह सब अनुग्रह गुरुदेव ही करते हैं।वे जीव की क्लास में जाकर उसके शंका समाधान करते हैं।
गुरुदेव से प्रथम मिलन एवं सत्संग में कोई देखते ही होश खो बैठा,कोई आठ-दस दिन तक सतत रोता रहा कोई गुरुदेव का सत्संग छोड़ के पुन: अपने संसार में जाना ही नहीं चाहता है।अपवाद स्वरूप ऐसे भी व्यक्ति हैं जिन्हे प्रारम्भ में अच्छा नहीं लगा किन्तु वे आज 'राधे' नाम सुनते ही बेचैन हो जाते हैं और अब पूर्ण रूप से सत्संग में हैं।श्री महाराजजी किसी ग्रहस्थ को जब तक उसका सांसरिक कर्तव्य(बीवी,बच्चों) आदि का शेष रेहता है संसार कदापि त्यागने नहीं देते हैं।वरन उस व्यक्ति के सत्संग से परिवार के अन्य सदस्य का भी हरि-गुरु में अनुराग होने लगता है।भगवद मार्ग में अग्रसर अविवाहित व्यक्ति गुरु सत्संग में परा विद्या के विषय में तो जानकारी प्राप्त करता ही है,गुरु कृपा से जगत में भी उच्च कोटि की शिक्षा प्राप्त कर स्वावलंबी एवं सक्षम बन जाता है।किसी व्यक्ति को गुरुधाम में वास मिल भी जाये तो यहाँ उसे लगातार कठिन वातावरण में परीक्षाओं का सामना करना पड़ता है। जब वह जगत वैराग्य एवं भगवद अनुराग में दृढ़ निश्चयी होता है तब यहाँ टिक पाता है। बार-बार अनुरोध करने पर भी गुरु सेवा हर किसी को उपलब्ध नहीं है।
श्री महाराजजी अथवा उनके अति-विद्वान प्रचारकों का प्रवचन सुनने कोई क्यों गया? अथवा किसी को भी श्री महाराजजी के रचित पद,साहित्य बिना मिले ही कैसे प्राप्त हुआ,पढ़ने सुनने को मिला,उनका प्रथम दर्शन कैसे प्राप्त हुआ? यदि हमारे गुरुदेव के सत्संगीयो से पूछा जाये तो सबके अपने-अपने विलक्षण विचित्र किन्तु कल्याणकारी अनुभव हैं।परंतु सब एक मत से स्वीकार करते हैं की अचानक उनकी कृपा से ही उनके दर्शन कर सके,उन तक पहुच पाये,सब पर अकारण कृपा ही हुई,ऐसे बनाव स्वयं बन गए,ऐसा वातावरण उपस्थित कर दिया गया गुरु द्वारा की सभी किसी न किसी बहाने से आकर्षित होकर उन तक पहुँच ही गये।हमारे कृपालु रखवार सदा जीव को परखते रहते हैं एवं उचित अवसर देख कर तत्काल जिज्ञासु मनुष्यों को अपना सत्संग प्रदान कर देते हैं।
राधे-राधे।
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