Friday, July 14, 2017

हार्दिक आभार।
जे.के.पी. के समस्त कार्य अबाध गति से आगे बढ़ते जा रहे हैं। J.K.P.(Jagadguru Kripalu Parishat) की तीनों अध्यक्षायें श्री महाराजजी के पद्चिन्हों पर चलते हुए ,रात दिन प्रेम रस सिद्धांत का प्रचार प्रसार करते हुये इन सिद्धांतों पर आधारित भक्तियोग साधना के लिए सभी प्रचारकों एवं साधकों को प्रेरित कर रहीं हैं। साथ ही सभी जनहित योजनाओं को अत्यधिक व्यवस्थित रूप दे रही हैं। स्वयं ही सब कार्यों का अवलोकन करते हुये सभी साधकों को गुरु सेवा हेतु प्रेरित और उत्साहित कर रही हैं।
जय श्री राधे।
राधे-राधे।
कुछ मित्रों ने अपना आर्थिक सहयोग प्रदान करने हेतु मेरा Account Number दुबारा पोस्ट करने को कहा है क्योंकि वो पोस्ट जिसमें सुश्री श्रीधरी दीदी द्वारा प्रचार यज्ञ में आर्थिक सहयोग की अपील की गई थी वो काफी नीचे चली गयी है,और आप में से अधिकांश को ढूंढने में असुविधा हो रही है। तो उनकी सुविधा के लिए मैं दुबारा Details पोस्ट कर रहा हूँ, फिर भी कोई असुविधा हो तो कृपया मुझसे inbox में संपर्क करें।
Details For making Donation with Internet Banking/BHIM App to Sushri Shreedhari Didi's(Preacher of 5th Original Jagadguru Shri Kripaluji Maharaj) Spiritual Activities.
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Bank: Bank of Baroda
Branch: Gopalpura,Jaipur
Account No: 33190100000691
IFSC: BARB0GOPJAI (fifth character is 0{zero}.

BHIM APP Users: UPI / Mobile Transfer: 9214318379.
Account holder: Sharad Gupta.

Those who don't use Internet Banking can you BHIM App (Government approved and developed). The details are available here - http://www.npci.org.in/BHIM_Product_Overview.aspx
You can download BHIM for Android from Google Play here - https://play.google.com/store/apps/details…
After you have installed BHIM and configured your bank account, you will be able to make donations to Mobile Number 9214318379 (or any other UPI enabled mobile number).
There is Another account for Making Donations for Spiritual Activities done by Sushri Shreedhari Didi: Details are as follows:
Name: Sharad Gupta.
Bank: State Bank of India,Patel Marg,Mansarovar,Jaipur.
IFSC: SBIN0060423.
Branch code: 60423

You can send through BHIM APP on this no.also.
UPI/Mobile Transfer: 9314887735.

You can also Donate for Charitable Activities Done by Sushri Shreedhari Didi's Trust.
Details are Given Below:
Support RadhaGovind Public Charitable Trust Jaipur's Humanitarian activities by making a tax-exempt Donation. This Trust is registered under section 12a of the Income Tax Act, 1961 and also exempt U/S 80 G(5)(VI) of Income Tax Act 1961, Ref No. 131/35/Trust Dated 07-01-09 w.e.f.29-09-08.

YOU CAN DIRECTLY DONATE IN OUR TRUST’S BANK ACCOUNT NO. 510201010050270, IN THE NAME OF “RADHAGOVIND PUBLIC CHARITABLE TRUST, JAIPUR” IN UNION BANK OF INDIA, JANTA STORE, BAPU NAGAR, JAIPUR. R.T.G.S. CODE- UBIN0551023, PAN NO.OF OUR TRUST IS – AABTR3216Q.
For international donations, please inbox me or email me At: sharadgupta40@yahoo.com.
Or whatsapp me at:9314887735 or 9214318379.

Radhey-Radhey.
आप सभी से निवेदन है कि जो भी आप सेवा दें वो Inform कर के दें। हमको पता होना चाहिए कि हमको किससे और कितना सहयोग प्राप्त हो रहा है।
अभी तक जिन भी बहन-भाइयों ने हमें अपना सहयोग प्रदान किया है उनको बहुत-बहुत हार्दिक आभार एवं नमन। श्री महाराजजी के श्री चरणों में आपकी प्रीति निरंतर बढ़ती जाये। हमें आप सबसे आगे भी सहयोग की आशा रहेगी।

जय श्री राधे।
मैं पुरानी पोस्ट्स भी यहाँ दुबारा share कर रहा हूँ जिससे आप दुबारा विचार कर सकें।
प्रिय मित्रों..!!! राधे-राधे।
आप सभी इतने दिनों से समय निकाल कर यहाँ इस विश्व के पंचम मूल जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज के दिव्यातिदिव्य सिद्धांतों का लाभ लेकर अपने मानव जीवन को सफल बना रहे हैं। इसके लिए आप सभी साधुवाद के पात्र हैं। इस घोर कलिकाल में दिव्य भगवद विषय के लिए इतना समय निकालना कोई आम बात नहीं है। अपार भगवत्कृपा एवं गुरुकृपा आप सभी भक्तों पर है।
आप ही में से कुछ भक्तों के आग्रह पर आज मैं आप सभी से श्री महाराजजी द्वारा प्रकटित दिव्य सिद्धांत " कृपालु भक्तियोग तत्त्वदर्शन" के व्यापक प्रचार-प्रसार हेतु कुछ निवेदन करना चाहता हूँ।
आप लोग इतने दिन से FaceBook Live Broadcast के माध्यम से श्री महाराजजी की ही कृपापात्र प्रचारिका सुश्री श्रीधरी दीदी के माध्यम से इन दिव्य सिद्धांतों से लाभान्वित हो रहे हैं साथ साथ श्री महाराजजी द्वारा विरचित संकीर्तनों का भी दीदी की रसमयी एवं मधुर वाणी में आस्वादन कर रहे हैं।
मेरी ही तरह आप सभी भक्तजन भी इन सिद्धांतों एवं संकीर्तन को विश्व्यापी बनाने की इच्छा रखते होंगें और अगर किसी के मन में ये भावना नहीं भी जाग्रत हुई है तो उनको भी ये भावना जगानी चाहिए क्योंकि इस दिव्य भगवत्विषय का दान संसार में सर्वोपरि दान कहा गया है। इस दान से समस्त विश्व का कल्याण निहित है। जैसा कि भागवत महापुराण में भी भगवान श्री कृष्ण कहते हैं:

तव कथामृतं तप्त जीवनं कविभिरीडितं कल्मषापहं । श्रवण मङ्गलं श्री मदाततं भुवि गृणंति ते भूरिदाजनाः।। (भागवत10:31:9)
ये भगवतविषय इतना अमूल्य है कि सम्पूर्ण विश्व दान करके भी कोई इसका मूल्य नहीं चुका सकता। इस विकराल कलिकाल में अनेक अज्ञानी असंतो द्वारा ईश्वरप्राप्ति के अनेक मनगढ़ंत मार्गों, अनेकानेक साधनाओं का निरूपण सुनकर भोले भाले मनुष्य कोरे कर्मकाण्डादि में प्रवृत्त होकर भ्रान्त हो रहे हैं एवं अपने परम चरम लक्ष्य से और दूर होते जा रहे हैं इसलिए अब हम सभी को एकजुट होकर "जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्त्वदर्शन" को समस्त विश्व में जोर शोर से प्रचारित प्रसारित करना है। अन्य लोगों के कल्याण के साथ-साथ इसी सेवा में हमारा भी कल्याण निहित है क्योंकि सेवा ही सबसे बड़ी साधना है और फिर हरिगुरु प्रचार की सेवा तो श्री महाराजजी के कथनानुसार समस्त सेवाओं में श्रेष्ठ है।
लेकिन इस सेवा के लिए भी कलियुग में धन की आवश्यकता है,आप सभी के आर्थिक सहयोग की आवश्यकता है क्योंकि प्रवचनों के आयोजनों में अथवा Telecast इत्यादि किसी भी उद्देश्य की पूर्ति के लिये सभी का आर्थिक सहयोग अपेक्षित है। धन को परमार्थ के कार्य में लगाना ये धन की सर्वोपरि गति है,इससे धन की भी शुद्धि होती है और समर्पण से हमारा अंत:करण तो शुद्ध होता ही है।
अपने जीवित रहते अगर हमने इसका सदुपयोग नहीं किया तो फिर न जाने कब समय समाप्त हो जाए ये देवदुर्लभ मानव देह छिन जाय और सबकुछ यहीं धरा रह जाएगा।
हमारे समस्त शास्त्र हमें दान के लिए प्रेरित करते हैं। कलियुग में तो इसी को कल्याण का साधन बताया गया है।

प्रगट चारि पद धर्म के,कलि महँ एक प्रधान।
येन केन विधि दीनेउ ,दान करै कल्याण।।
(श्री राम चरित मानस)

"दानमेकं कलौयुगे"
आज समस्त विश्व में इतना भ्रष्टाचार, अंधविश्वास, अज्ञान चारों और फैला हुआ है।इन समस्त बुराइयों से छुटकारा पाने का एकमात्र उपाय ये दिव्य तत्त्वज्ञान ही है।
इसलिए इस तत्त्वज्ञान का प्रचार करना हमारा आध्यात्मिक,सामाजिक,नैतिक हर प्रकार से कर्तव्य है।
समाज का सबसे बड़ा लाभ इसी सेवा से होगा और फिर जितने नए साधक अध्यात्म के पथ पर चलेंगे तो उसका कमीशन हरिगुरु के दरबार से हमें भी मिलेगा। यानि उनकी और विशेष कृपा के भी अधिकारी हम बन सकेंगे। अस्तु मैं आप सभी से निवेदन करता हूँ कि दान का और इस प्रचार की सेवा का महत्त्व समझ कर आप सभी आगे आयें अपना अधिक से अधिक आर्थिक सहयोग प्रदान करें और इन दिव्य प्रवचनों के आयोजन के माध्यम से अपना एवं अन्य जीवों का भी कल्याण करके अधिकाधिक हरिगुरु कृपा प्राप्त कर अपना अमूल्य जीवन सार्थक करें।
मैं आशा करता हूँ कि आप सभी मेरे इन उदगारों से सहमत होंगे एवं किसी भी बात को अन्यथा न लेते हुए श्री महाराजजी के दिव्य ज्ञान प्रचार यज्ञ में अपना अपना सहयोग हमें अवश्य प्रदान करेंगे।
अब तक प्रदान किये आपके प्रत्येक सहयोग के लिए एक बार पुनः आप सभी का कोटि कोटि आभार।
आप सभी सिर्फ एक App Download करके घर बैठे ही Online Donation कर सकते हैं,जिसका तरीका आपको आगे बताया जा रहा है। अगर आप मेरी बातों से सहमत हैं और सुश्री श्रीधरी दीदी की ओजस्वी एवं मधुर वाणी में श्री महाराजजी का ये दिव्य तत्त्वज्ञान एवं रसमयी संकीर्तनों को घर-घर तक जन-जन तक पहुंचाना चाहते हैं तो खुले दिल से दान कीजिये।
जय श्री राधे।

प्रिय मित्रों...राधे-राधे।
आप सभी से निवेदन है कि दो Minute निकाल कर बिल्कुल Free Mind से इस पोस्ट को अवश्य पढ़ें।
कल मैंने 7 साल में पहली बार आप सभी मित्रों से Donation की अपील की। आपको लगा होगा एकाएक क्या जरूरत आ पड़ी। तो मुझे कुछ प्रचार संबंधित बातें आपको Clear करनी है,क्योंकि आपको अभी अंदाज़ा नहीं है कि एक छोटे से प्रवचन को करने में कितना ख़र्चा आता है। एक 15 दिन के प्रवचन को अगर बिल्कुल किफ़ायत से भी किया जाए तो भी 4-5 लाख रुपये लगना मामूली बात है। Hall, Tent,Sound,Light,Generator,Publicity,Stage,Decoration,Transportation,इत्यादि जरूरी चीजों में इतना ख़र्चा आम बात है। जो प्रचार की सेवा में हैं उनको इसका idea होगा। और ये तब है जब आप अपने ही शहर में Lecture कर रहे हैं। अगर बाहर करते हैं तो ख़र्चा Automatically बढ़ जाता है।
ये जो Lectures होते हैं आपको Fblive देख के अंदाज़ा हो गया होगा कि बिल्कुल आडंबर रहित होते हैं। खरा- खरा श्री महाराजजी का सिद्धांत बोला जाता है,Public को खुश करने के लिए या उनके अनुकूल सिद्धांत को तोड़ा मरोड़ा नहीं जाता। आजकल के अधिकतर पाखंडी वक्ताओं की तरह पब्लिक को उल्लू नहीं बनाया जाता। संसार नहीं दिया जाता,Pure आत्मा के कल्याण की बात बताई जाती है जो पूरे विश्व में आपको अन्यत्र सुनने को नहीं मिलेगा।
यहाँ सब कुछ सच्चाई और ईमानदारी से किया व बोला जाता है तो आज कलियुग में जब लोगों को विष पीने में ही आनंद मिल रहा है, वहाँ Pure देसी घी खाने को मिल जाये,तो Digestion खराब होना लाज़मी है। अधिकतर घोर संसारियों के हमारे श्री महाराजजी का दिव्य सिद्धांत गले नहीं उतरता। वो सच्चाई सुन नहीं पाते,अरे! जब संसार में दो दो रुपये में चमत्कार दिखाये जा रहे हैं,कोई कृपा बाँट रहा है,कोई पति नहीं तो पति,बच्चा नहीं तो बच्चा,शरीर के रोग पुड़िया देके भगा रहा है,संसार की मीठी मीठी बातें,सास बहुओं की कहानियाँ गाके लोगों को रिझाया जा रहा है, गीता,रामायण,भागवत को तोड़ मरोड़ के अपना ही मनगढंत सिद्धांत पेश किया जा रहा हैं,500 रुपये देकर महा मृत्युंजय के जाप से मरे हुए को जिंदा किया जा रहा है, वहाँ इस युग के पंचम मूल जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज का दिव्यातिदिव्य सिद्धांत कैसे लोगों को सहन होगा।
कहने का मतलब ये है कि इस कलियुग में सही सिद्धांत को जनता तक पहुंचाना सबसे बड़ी सेवा है, हम कृपालु भक्तों की जिम्मेदारी है।
अब जैसे जैसे कलि का प्रभाव बढ़ता जा रहा है वैसे वैसे सज्जनों की संख्या भी कम होती जा रही है। आज से 7-8 साल पहले श्रीधरी दीदी के प्रवचनों में हजारों की भीड़ होती थी अब संख्या 200-300 तक सिमट गई है। उसमें भी 50 Percent तो घर के झगड़ों से तंग होके TimePass करने आते हैं। अब हमको तो गुरु आज्ञा से इस जीवन में प्रचार की ही सेवा करनी है तो हमने Social Media पर प्रचार शुरू किया। फिर Facebook Live की facility आयी तो उसके Through प्रचार को आगे बढ़ाया। हमारा Aim यही है कि अधिक से अधिक जीवों तक श्री गुरुदेव का दिव्य सिद्धांत पहुंचे।
उसके लिए मन में आया कि क्यों न दीदी के प्रवचनों को Television पर Live दिया जाए जिससे सही सिद्धांत ज्यादा लोगों तक पहुंचेगा। फिर जैसे social media से हमको श्री महाराजजी के जीव मिले, Tv से भी मिलेंगे और वो लोग भी Help करके इस प्रचार प्रसार को आगे बढ़ाएंगे। एक chain system बन जायेगा।
आप दिन रात देखते होंगे कि इतने चैनल नहीं जितने बाबा पैदा हो गए हैं पिछले कुछ वर्षों में। चैनल कम पड़ गए पर नित नए बाबा प्रकट हो रहे हैं, सोचिये क्यों, क्या सबको ज्ञान प्राप्त हो गया क्या अचानक? ये सब इसलिए हो रहा है कि धर्म को , कथा को इन घटिया लोगों ने Business बना दिया है। अनपढ़ से अनपढ़ अँगूठा छाप के पूरे पूरे साल के Live Programs Book हैं ,देश में ही नहीं ये गधे विदेशों में भी अपना धंधा चला रहे हैं, कितना बड़ा आश्चर्य की वेद शास्त्र की a,b,c जिनको नहीं मालूम, रामायण,गीता,भागवत का अर्थ का अनर्थ करके बोलने वाले ये दुष्ट कैसे पूजे जा रहे हैं। क्योंकि लोगों को भ्रांति है कि संसार में सुख है और ये गधे इन भोले भाले लोगों को संसार ही बाँट रहे हैं, और एक तरफ हमारे आदरणीय प्रचारक भाई-बहन जो एक एक Lecture को तरस रहे हैं।
आपने सोचा कभी इनके विषय में या श्री महाराजजी के विषय में कि ये लोग क्यों नहीं धंधा कर सकते। इनमें क्या कमी है, इन्हीं के प्रवचन Live क्यों नहीं आते,इन्हीं से कोई नेता,अभिनेता,उद्योगपति,कोई Media house नहीं जुड़ा आजतक।विचार कीजिये। क्यों हम लोग एक-एक रुपये के लिए तरस रहे हैं। सोचिये? क्योंकि हमारे श्री महाराजजी का ज्ञान दिव्य है उससे समझौता नहीं किया जा सकता। वो इन विद्वान प्रचारकों के अलावा और कोई पूरे विश्व में नहीं बोल सकता। हमको धंधा करना होता तो सिर्फ 40 ही प्रचारक क्यों हैं, 4000 बना देते महाराजजी। उनके लिए क्या असंभव था। हम भी ज्ञान को तोड़मरोड़ के बोल सकते थे।लोगों को मूर्ख बना सकते थे, लेकिन हमारे श्री महाराजजी साक्षात भगवान हैं और उनके सभी कार्य दिव्य हैं। सही ज्ञान देने को ही इस लोक में आये हैं। वे सिद्धांतों से समझौता नहीं कर सकते। वे हम सभी का कल्याण करने को अवतरित हुए हैं। इसलिए उनके कृपापात्र प्रचारक भी समझौता नहीं कर सकते। इसलिए फिर ये हम साधकों की जिम्मेदारी बनती है कि प्रचार-प्रसार में मदद करें। विश्व्यापी प्रचार के लिए बहुत अधिक आर्थिक सहयोग की आवश्यकता है। क्यों प्रचार की आवश्यकता है ये कल Detail में लिखा था,दुबारा पढ़ लीजियेगा।
आप मेरा खुले दिल से सहयोग कीजिये। जिसकी जितनी श्रद्धा हो वो खुशी खुशी Donate करे। आपके एक एक पैसे को हरिगुरु प्रचार के लिए ही Use किया जाएगा। सभी लोग संकल्प करें तो कुछ भी असंभव नहीं। हम अपने महाराजजी का ऋण तो कभी नहीं उतार सकते बस उनके दिव्य सिद्धांतों को जितना अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचा सके वोही सबसे बड़ी सबसे सच्ची सेवा होगी। कल्पना कीजिये कि एक दिन सम्पूर्ण विश्व भगवान राम,भगवानकृष्ण,गौरांग महाप्रभु की तरह ही हमारे प्राणप्रिय "कृपालु महाप्रभु" को जाने उनको माने उनके दिव्य सिद्धांतों पर अमल करके अपने मानव जीवन को धन्य बनायें। इसके लिए हमको एकजुट होकर प्रचार करना होगा,हमारे प्रचारक दीदी,भैया लोगों के भी Live Lectures Tv पर आयें,उनके भी पूरे साल के कार्यक्रम आगे से आगे Book हों। उसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए मैंने पहली बार सोशल मीडिया पर Donation माँगी है।और मुझे अपने इस कार्य पर गर्व है,क्योंकि मैं सद्कार्य के लिए Appeal कर रहा हूँ, इस सेवा से तो आप ही का कल्याण होगा।
एक प्रश्न और कि कुछ महानुभाव प्रश्न कर रहे हैं कि आपने अपना Account क्यों दिया तो उनको बता दूँ कि हमारी ट्रस्ट का Already Account है जहाँ आप Charitable activities के लिए और 80g की Rebate के लिए दान कर सकते हैं, वहाँ का पैसा आप Spiritual activities में use नहीं कर सकते। ज्यादा जानकारी के लिए shreedharididi.in पर visit करें। ये जो एकाउंट मैंने बनाया है इसमें सिर्फ और सिर्फ श्री महाराजजी के दिव्य ज्ञान के प्रचार प्रसार के लिए पैसा खर्च किया जाएगा। आप लोग एकदम से विचलित मत हुआ कीजिये।
मेरे बारे में तो आप में से अधिकाँश को पता होगा कि जो करता हूँ खुलेआम करता हूँ, लार लपेट,लल्लाचप्पो मुझे करना नहीं आता। सिर्फ और सर्फ अपने श्री महाराजजी के लिए जीता हूँ, संसार वालों की निंदा स्तुति से मुझे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। इसलिए मुझसे सवाल करने से पहले सभी को खुद के अंदर भी झाँक लेना चाहिए। आज आप लोग जो अपनी दूषित बुद्धि का इस्तेमाल कर रहे हैं एक दिन मेरे इन्हीं पदचिन्हों पर चलेंगे। आजतक आप लोगों ने मेरी नकल ही की है,कभी मेरी तरह Original बनके भी देखिए। खैर मैं दुर्जनों की परवाह नहीं करता,मेरा आह्वाहन सिर्फ उन्हीं लोगों के लिए है जो मेरी तरह सोच रखते हैं और मुझपे विश्वास रखते हैं।
आशा है सभी को सभी सवालों का जवाब मिल गया होगा। फिर भी कोई Query हो तो इनबॉक्स में संपर्क करें। सबको तो भगवान स्वयं भी संतुष्ट नहीं कर सके, तो मेरी क्या हैसियत।
कल से जिन भी सत्संगियों ने अपना योगदान दिया है उनको कोटि कोटि नमन एवं हार्दिक धन्यवाद। आशा है आप आगे भी बिना कहे अपना सहयोग देते रहेंगे। आप सभी से करबद्ध निवेदन है कि आप लोग और लोगों को भी इस सद्कार्य के लिए प्रेरित कीजिये। इस सेवा में सभी का एवं सम्पूर्ण विश्व का कल्याण निहित है।

राधे-राधे।
प्रिय मित्रों..जय श्री राधे।
जिन भी साधक बहन-भाइयों ने सुश्री श्रीधरी दीदी की कल सम्पन्न हुई 11 दिवसीय विलक्षण दार्शनिक प्रवचन को पूर्ण मनोयोग से देखा व श्रवण किया,लाभ लिया उनका बहुत-बहुत हार्दिक आभार।
आप सभी को भी आज दीदी के प्रवचन के बिना शून्य सा,खाली-खालीपन सा लग रहा होगा और मुझे भी आप सबके बिना बहुत शून्य सा प्रतीत हो रहा है। इतनी व्यस्त दिनचर्या में आप सब ने श्री महाराजजी के दिव्य सिद्धांत को सुनने के लिए समय निकाला ये वाकई बहुत बड़ी बात है। Average 2000 Views हमको प्रतिदिन प्राप्त हुए,जिसका मैं मान के चलता हूँ कि कम से कम 500 ऐसे साधक बहन भाई थे जो प्रतिदिन हमसे Regular जुड़े,और लाभ लिया। आप सभी ने हमारे इस आयोजन को सफल बनाया उसके लिए पुनः हार्दिक आभार।
मैंने इस बार आपसे दीदी के आगे भी प्रवचन सुचारू रूप से चल सकें के लिए आर्थिक सहयोग की भी अपील की। एक छोटे से छोटे scale पर किये गये प्रवचन का खर्चा भी आपको बताया। हमको अब आगे का सोचना है ..क्योंकि जो आपने Facebook Live के जरिये लाभ लिया वो अब हम सबका कर्तव्य है कि Television के जरिये आस्था,संस्कार जैसे चैनल भी सीधा प्रसारण दिखा के अधिक से अधिक लोगों तक ये दिव्य ज्ञान पहुँचा सकें उसके लिए कोशिश करनी होगी। बहुत बड़ा बजट का कार्य है ये पर हम सब जुड़ जायें तो असंभव नहीं। कुछ साधकों ने हमको अपना सहयोग प्रदान किया। पर जितना अपेक्षित था उससे बहुत ही कम सहयोग प्राप्त हुआ। शायद मेरी बात आपके दिल तक नहीं पहुँची, या आप में से कुछ ने मुझे ही गलत समझ लिया। नहीं तो 500 लोग Online पूरा प्रवचन सुनें और भूरी भूरी प्रशंसा करें और सहयोग सिर्फ 7 लोगों का आया। आप सभी संकल्प करें तो सभी आर्थिक सहयोग कर सकते हैं,मैंने दो पोस्ट के जरिये लिखा था समझाया था कि क्यों जरूरत है आपके सहयोग की। उनको दुबारा मनोयोग से पढियेगा।आपको ज्ञात होगा कि मैं आपको अपना परिवार मानता हूँ,और किसी Noble Cause के लिए हरिगुरु प्रचार यज्ञ जैसे नेक कार्य के लिए आपसे कुछ सहयोग माँगा है तो आपको अधिकांश को आगे आना चाहिए। इस सेवा में सभी का लाभ निहित है।
प्रचार में कोई दान की limit नहीं है आप चाहे 100 रुपये दे या 1000 या 1लाख या दस लाख सब अपनी अपनी सामर्थ्य के अनुसार कुछ न कुछ निकाल सकते हैं। इसलिए पुनःविचार कीजियेगा
जिन साधकों ने हमको अपना सहयोग प्रदान किया उनको सभी को कोटि कोटि नमन एवं हार्दिक साधुवाद। आप नियमित रूप से हमारी सहायता आगे भी करते रहिए। इस सेवा में कुछ घटता नहीं है बल्कि कई गुणा फल मिलता है। प्रचार से बड़ी कोई सेवा नहीं है ये याद रखिये।
आपको ये भी ज्ञात हो कि इस प्रवचन श्रृंखला के 11 दिनों के वीडियो Save हैं आप अपनी सुविधानुसार इनका लाभ ले सकते हैं।
एक Important बात और जो भी लोग हमको आगे से आर्थिक सहयोग भेजें वे कृपया अपना नाम व amount मुझको मेरे इनबॉक्स में अवश्य बतायें। माना कि आप अपने को गुप्त रखना चाहते हैं पर मुझे तो कम से कम अलग से Inbox में बता ही सकते हैं।
वे सभी जीव जो श्री महाराजजी के दिव्य ज्ञान को सम्पूर्ण संसार में फैलाना चाहते हैं,जिनका मुझपे विश्वास हो,वो सभी आगे आयें। इस दिव्य ज्ञान की इस संसार को आज सर्वाधिक आवश्यकता है,और इससे बड़ी कोई सामाजिक सेवा नहीं हो सकती।
आप सभी ने पिछले 11 दिनों में इतना प्यार,सहयोग दिया,हमारा उत्साहवर्धन किया उसके लिए हार्दिक साधुवाद एवं नमन।

राधे-राधे
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुख से...!!!

तुम संसार से मन हटा कर राधाकृष्ण में,गुरु में लगाओ तो मन शुद्ध होगा। जिसको कृपा का भरोसा हो गया उसको और कुछ नहीं करना। उस कृपा के भरोसे को लाने के लिये साधना करनी होती है। कीर्तन करो,रूपध्यान करो,आँसू बहाओ,क्षमा माँगो अपने पापों की। ये सब साधनायें जो बताते हैं संत लोग इसलिये कि इससे मन शुध्द हो, जितना मन शुध्द होगा उतना ही विश्वास होगा।

समस्त जीवात्माओं की आत्मा केवल परमात्मा श्री कृष्ण ही हैं।
कृष्णमेन मवेहि त्वमात्मानं सर्वदेहिनाम ( भागवत)
उन परमात्मा श्री कृष्ण की आत्मा एकमात्र वृषभानुनंदिनी राधा हैं।
आत्मा तु राधिका तस्य (स्कंद पुराण)
अतएव समस्त प्राणी एक मात्र श्री कृष्ण के दास हैं। ऐसे ही श्री कृष्ण भी श्रीराधा के दास हैं। यद्यपि सिद्धांततः राधा कृष्ण एक ही हैं। भावार्थ यह कि समस्त जीवों के आराध्य राधाकृष्ण ही हैं। यही सबका लक्ष्य है।
-----तुम्हारा जगद्गुरु: कृपालु:

जय हो जय हो अलबेलो सरकार, बलिहार बलिहार।
जय हो नागर नंदकुमार, बलिहार बलिहार।
जय हो राधा प्राणाधार, बलिहार बलिहार।
जय हो सखिन प्राण साकार ,बलिहार बलिहार।
जय हो रसिकन को सरदार, बलिहार बलिहार।
जय हो दिव्य प्रेम अवतार, बलिहार बलिहार।
जय हो मम 'कृपालु' सरकार, बलिहार बलिहार।।

------ जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज।
हे प्राणेश्वर ! कुंजबिहारी श्रीकृष्ण ! तुम ही मेरे जीवन सर्वस्व हो । हमारा–तुम्हारा यह सम्बन्ध सदा से है एवं सदा रहेगा (अज्ञानतावश मैं इस सम्बन्ध को भूल गयी)।तुम चाहे मेरा आलिंगन करके मुझे अपने गले से लगाते हुए, मेरी अनादि काल की इच्छा पूर्ण करो, चाहे उदासीन बनकर मुझे तड़पाते रहो, चाहे पैरों से ठोकर मार-मारकर मेरा सर्वथा परित्याग कर दो। प्राणेश्वर ! तुम्हें जिस-जिस प्रकार से भी सुख मिले, वही करो मैं तुम्हारी हर इच्छा में प्रसन्न रहूंगी । ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं कि निष्काम प्रेम का स्वरूप ही यही है कि अपनी इच्छाओं को न देखते हुए, प्रियतम की प्रसन्नता में ही प्रसन्न रहा जाय । अपने स्वार्थ के लिए प्रियतम से बदला पाने की भावना से प्रेम करना व्यवहार जगत का नाटकीय व्यापार सा ही है।
--- जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।

अरे मन ! इस संसार का समस्त व्यवहार झूठा है। जब तक किसी के पास तन, मन, धन एवं सहायकजन रहते हैं तब तक उसे सब संसार पूछता है किन्तु जब इनका अभाव देखता है तब अपना परिवार भी उसे छोड़ देता है। जब तक किसी से स्वार्थ सिद्ध होता रहता है तब तक उससे हजारों नाते जोड़ता है किन्तु जैसे ही अपना काम बनते नहीं देखता वैसे ही वह मित्र भी अपनी मित्रता छोड़ देता है। ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं कि अरे मन ! इसलिए तू संसार से किसी प्रकार की आशा न रखते हुए प्रतिक्षण श्यामसुन्दर का भजन कर।
----- जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।

संसार में जब कोई भूत से आविष्ट हो जाता है, कोई आत्मा किसी आत्मा पर हावी हो जाती है, जिसको आप लोग कहते हैं कोई भूत लगा है, कोई प्रेत लगा है, तो जितनी देर तक वो भूत रहता है, वही वर्क करता है।
महापुरुषों को भी महाभूत लग जाता है, वो नन्दपूत।
तो वही करता है सब काम, फिर महापुरुष कुछ नहीं करता। भगवत्प्राप्ति के बाद नन्दपूत का भूत महापुरुषों के ऊपर हावी हो जाता है। और महापुरुष को कहता है, तुम चुप बैठो, मैं सब कुछ करूँगा:- ‘तस्य कार्यं न विद्यते’।
यस्त्वात्मरतिरेव स्यादात्मतृप्तश्च मानवः।
आत्मन्येवात्मनः तुष्टस्तस्य कार्यं न विद्यते॥
(३-१७, गीता)
नैव चास्ति किंचित्कर्तव्यमस्ति चेत् न स तत्त्ववित्
(१-२३, जाबालदर्शनोपनिषत्)
अगर कुछ करता है वो महापुरुष, तो महापुरुष नहीं है। महापुरुष का मतलब कृतकृत्य। कृत कृत्य:- करना कर चुका। कृतार्थ, वो जो कुछ पाना था, पा चुका।
अब कुछ भी क्यों करे? हम क्यों करते हैं कोई भी कर्म?
कुछ पाना है, ‘आनन्द’। जो पा चुका, वो कुछ क्यों करे?
अगर करे, तो क्वेश्चन होगा।
लेकिन हर महापुरुष करता है और भगवान् भी करता है।
अरे! भगवान् को क्या पाना है?
न मे पार्थास्ति कर्तव्यं त्रिषु लोकेषु किंचन।
अर्जुन! मुझे कुछ पाना नहीं है, लेकिन देख,
मैं भी सब कर्म करता हूँ—
उत्सीदेयुरिमे लोका न कुर्यां कर्म चेदहम्।
(३-२२, ३-२४, गीता)
तो, ये भगवान् और महापुरुष जो कर्म करते हैं,
वह अपने लिये नहीं करते। हम सब जीवों के लिये करते हैं।
----- जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
भक्ति के विषय में वैसे तो सब अधिकारी हैं, लेकिन ‘भक्ति रसामृत सिन्धु’ में तीन भाग कर दिये हैं। एक उत्तम अधिकारी, एक मध्यम अधिकारी और एक कनिष्ठ।
उत्तम अधिकारी कौन है?
शास्त्रे युक्तौ च निपुणः सर्वथा दृढ़ निश्चयः।
प्रौढ़श्रद्धोऽधिकारी यः स भक्तामुत्तमो मतः॥
ध्यान दो!
नम्बर एक— शास्त्र-वेद के ज्ञान में निपुण हो। अगर वो निपुण नहीं होगा, तो एक आदमी ने अपने तर्क से उसके दिमाग में भूसा भर दिया और वो अलग हो जायेगा। हमारी बुद्धि तो वैसे ही संशयात्मा है, इसलिये शास्त्र-वेद का ज्ञान परमावश्यक है और वो भी किसी महापुरुष से मिले। पण्डितों से मिलने से वो काम नहीं बनेगा, और दिमाग खराब हो जायेगा।
और, नम्बर दो— ‘सर्वथा दृढ़ निश्चयः’, निश्चय दृढ़ हो, ढुलमुल नहीं। अंदर भगवान् बैठे हैं। क्या पता बैठे हैं कि नहीं? बैठे होते, तो कुछ तो मालूम पड़ता। लेकिन, शास्त्र-वेद झूठे नहीं हैं। हाँ, ये तो ठीक है।लेकिन...लेकिन...लेकिन...लेकिन....। ये भक्ति नहीं कर सकता। दृढ़ निश्चय हो।
वाल्मीकि से कहा—
मरा-मरा कहते रहना, जब तक हम लौट के न आवें,
तो, ये क्वेश्चन नहीं किया, कब लौट के आयेंगे आप? चुप।
बस आज्ञापालन, ‘सर्वथा दृढ़ निश्चयः।’
और,
‘पौढ़ः श्रद्धाः’ और श्रद्धा प्रगाढ़ हो, भूख हो। हमको पाना ही है, इसी जन्म में पाना है। ये उत्तम अधिकारी है।
इसको कोई कुसंग कुछ नहीं कर सकता।

---- जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।

मेरी श्यामा मेरे श्याम,विहरत नित वृन्दावन धाम।

मेरी श्यामा मेरे श्याम,इक श्रृंगार एक छविधाम ।

मेरी श्यामा मेरे श्याम,देत 'कृपालु' कृपा बिनु दाम।।

------- जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।

Your rise and fall depend on your thinking.So do not keep your mind idle.Do not let it be influenced by the company of the wrong people.Donot listen to the wrong people.Throw out all their words which you have heard,just as you spit out the grit which was mixed with your food.
Always retain the thought of your 'GURU' in your mind and heart.

-------JAGADGURU SHRI KRIPALUJI MAHARAJ.

मैं तुम्हारा हूँ ...!!!
मैं तुम्हारा हूँ फिर निराशा कैसी ?
उनको पतित प्यारे हैं फिर चिंता क्या ?

निराशा साधना में सबसे बड़ी बाधा है। हरि गुरु चिंतन निरंतर चलता रहे , तो कभी निराशा आ ही नहीं सकती। मैं बार - बार , बार - बार समझाता हूँ अपने को दीनहीन अकिंचन मानो , किन्तु यह न सोचो कि नहीं मुझसे तो साधना होगी नहीं। बार - बार सोचो---!!!
श्री राधे जू हमारी सरकार , फिकिर मोहे काहे की।
जब ऐसी दया दरबार , फिकिर मोहे काहे की। जब ऐसी सरल सुकुमार फिकिर मोहे काहे की।

राधा रानी के गुणों का चिंतन करना ही सबसे बड़ी दवाई है। आश्चर्य होता है , जब सुनता हूँ कि डिप्रेशन हो गया , टैंशन हो गया।
हरि गुरु पर यदि अविश्वास है तब ही ऐसा होता है। गुरु आज्ञा पालन सहर्ष करते हुये हर श्वास के साथ साथ राधे नाम का जप करते हुये , कोई जीवन व्यतीत करे , तो किसी प्रकार की अशान्ति हो ही नहीं सकती। अशान्ति तो अविवेक का विषय है इसे पास न फटकने दो। चाहे जैसी भी परिस्थिति हो।

जब ऐसी तुम्हारी रखवार फिकिर तोहे काहे की।
........जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाप्रभु।
भगवान् संसार में सर्वत्र व्याप्त है," हरि व्यापक सर्वत्र समाना "
लेकिन न हमें भगवान् दिखाई देता है, न उसके शब्द सुनाई देते हैं, अर्थात् हमें संसार में भगवान् का किसी भी प्रकार का अनुभव नहीं होता। हमारी इन्द्रियाँ अर्थात् आँख, कान, नाक, त्वचा, रसना, हमारा मन और हमारी बुद्धि ये सब मायिक हैं और इन्हीं इन्द्रिय, मन, बुद्धि द्वारा हम संसार की प्रत्येक वस्तु का अनुभव करते हैं, लेकिन भगवान् माया से परे दिव्य है, उसे इन इन्द्रिय, मन, बुद्धि द्वारा ग्रहण नहीं किया जा सकता। भगवान् जब हमारी इन्द्रिय, मन, बुद्धि को शक्ति प्रदान करते हैं, तब ये सब अपना-अपना कर्म करते हैं, अन्यथा तो ये सब जड़ हैं, अतः माया से बने इन्द्रिय, मन, बुद्धि के द्वारा दिव्य भगवान् का अनुभव होना असम्भव है। जब इन्द्रिय, मन, बुद्धि दिव्य हो जायेंगे, तभी संसार में सर्वत्र व्याप्त भगवान् का अनुभव किया जा सकता है, जैसे गोपियाँ सर्वत्र श्रीकृष्ण का दर्शन करती थीं- जित देखूँ तित श्याममयी है।
-----जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाप्रभु।

अरे भाई! कुछ कमा लो,जैसे पहले कुछ कमाया था तो मनुष्य का शरीर मिला और भगवान में थोड़ी सी प्रव्रत्ति हुई।

......श्री महाराजजी।


श्री राधे जू को, अधाधुंध दरबार |
जिन वनचरिन आचरन कुत्सित, जग जेहि कह ब्यभिचार |
तिन कहँ निज सहचरि करि हरि सों, करवावति मनुहार |
जेहि रासहिं तरसति ‘कमला’ सी, तप करि – करि गइ हार |
तेहि वनचरिहिं सखिन किय रासहिं, को अस सरल उदार |
कह ‘कृपालु’ यह जानि गहहु मन ! शरण गौर सरकार ||

भावार्थ – श्री किशोरी जी के दरबार में छप्पर – फाड़ कृपा होती है | जिन वनचारियों का आचरण निन्दनीय था, संसार जिसे व्यभिचार की संज्ञा देता है ( पूर्णतम पुरुषोत्तम ब्रह्म श्रीकृष्ण को उस रूप में न जानते हुए भी पर – पुरुष मानकर ही अनन्य – प्रेम किया | जिस प्रकार औषधि अनजाने में भी पूर्ण लाभ देती है, उसी प्रकार गोपियों को भी भगवल्लाभ हुआ ) किशोरी जी ने उन वनचरियों को अपनी सहचरी बनाया एवं ब्रह्म श्याम से भी उनकी खुशामद करवायी | जिस महारास में युगों तप करने पर भी महालक्ष्मी सरीखी प्रवेश तक नहीं पा सकीं, उसी रास में किशोरी जी ने उन वनचरियों को अपनी प्राणसखी बनाकर अपनी अद्वितीय उदारता का परिचय दिया | ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं – अरे मन ! ऐसे उदार दरबार के रहस्य को जानकर अलबेली सरकार के युगल – चरणों की शरण ग्रहण कर |
( प्रेम रस मदिरा श्रीराधा – माधुरी )
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
सर्वाधिकार सुरक्षित - राधा गोविन्द समिति

कोई महापुरुष हो , चाहे राक्षस हो। अपने मन में दूसरे के प्रति हमेशा अच्छी भावना होनी चाहिये। जिससे अच्छे विचार अंतःकरण में आवें। वो जो है, वो तो रहेगा ही। वो राक्षस होगा, तो राक्षस रहेगा। महापुरुष होगा तो महापुरुष रहेगा। हम अपने अंदर अगर दुर्भावना लाते हैं तो हमने तो अपना अंतःकरण बिगाड़ लिया। अब भगवान् जो थोड़ा पैर रखे आने के लिए, एबाउट टर्न चल दिये। वो कहते हैं - क्योंकि तुम तो औरों को बुलाते हो , इसलिये मैं नहीं रहता ऐसे घर में।
!! जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज !!

भगवान का बल निरन्तर हमारे पास रहने पर भी सक्रिय नहीं होता, इसका कारण है कि हम उसे स्वीकार नहीं करते। जब भी हम भगवान् के बल का अनुभव करने लगेंगे, तभी वह बल सक्रिय हो जायेगा और हम निहाल हो जाएंगे।
हमारी भोगों में सुख की आस्था इतनी दृढ़मूल हो रही है कि वैराग्य के शब्दों से वह दूर नहीं होती। किसी महान विपत्ति का प्रहार तथा भगवान् अथवा उनके किसी प्रेमीजन महापुरुष की कृपा ही इस आस्था को दूर कर सकते हैं।
शरणागत वही हो पाता है, जो दीन है। जिसे अपनी बुद्धि, सामर्थ्य, योग्यता का अभिमान है, वह किसी के शरणागत क्यों होना चाहेगा। जब अपना सारा बल, बलों की आशा - भरोसा टूट जाते हैं, तब वह भगवान् की और ताकता है और उनका आश्रय चाहता है।
------जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।


"हे श्यामसुंदर! संसार में भटकते भटकते थक गया। हे करुणा वरूनालय! तुमने अकारण करुणा के परिणाम स्वरूप मानव देह दिया ,गुरु के द्वारा तत्वज्ञान कराया कि किसी तरह तुम्हारे सन्मुख हो जाऊँ तथा अनंत दिव्यानन्द प्राप्त करके सदा सदा के लिए मेरी दुख निव्रत्ति हो जाये लेकिन यह मन इतना हठी है कि तुम्हारे शरणागत नहीं होता।"
--- जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।

नींद जो है वो तमोगुण है। जाग्रत अवस्था में हम सत्वगुण में जा सकते हैं,रजोगुण में भी जा सकते हैं। लेकिन नींद जो है वो प्योर(pure) तमोगुण है। बहुत ही हानिकारक है। अगर लिमिट से अधिक सोओ तो भी शारीरिक हानी होती है। आपके शरीर के जो पार्ट्स हैं उनको खराब करेगा वो अधिक सोना भी। रेस्ट की भी लिमिट है। रेस्ट के बाद व्यायाम आवश्यक है। देखिये शरीर ऐसा बनाया गया है कि इसमें दोनों आवश्यक हैं। तुम्हें संसार में कोई जरूरी काम आ जाए,या कोई तुम्हारा प्रिय मिले तब नींद नहीं आती। इसलिए कोई फ़िज़िकल रीज़न नहीं कारण केवल मानसिक वीकनेस है। लापरवाही,काम न होना,नींद आने का प्रमुख कारण है। हर क्षण यही सोचो की अगला क्षण मिले न मिले अतएव भगवद विषय में उधार न करो।
------जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।

The Guru imparts spiritual knowledge, removes the darkness of ignorance and guides you towards the attainment of your supreme goal. Living in the association of a Saint for some time, if you find yourself more deeply attached to God and detached from the world, this is the surest proof that he is a God-realised soul. You could never have imagined giving so much time to devotion of God. It was only made possible due to the grace of your Guru. You should always realise the grace of your Guru to be instrumental in your spiritual progress.
--------JAGADGURU SHRI KRIPALU JI MAHARAJ.

अलबेलो हमारो यार, प्रेम के बंधन में |
नहिं जात समाधिन जोगिन जेइ
नाचत ता थेइ, ता थेइ – थेइ तेइ,
ब्रजनारिन कि तारिन कि तार, प्रेम के बंधन में |
नित खोजत वेद ऋचान जेई,
बनि यशुमति के सुत कान्ह तेई,
बँधे ऊखल में लेहु निहार, प्रेम के बंधन में |
ब्रह्माण्ड अनन्तहिं पाल जेई,
छोरत मुख कौरहिं ग्वाल तेई,
बने घोड़ा गँवारन ग्वार, प्रेम के बंधन में |
अग जग सब जग संहारक जेइ,
डरपत यशुमति की साँटिन तेइ,
धनि लीला ‘कृपालु’ सरकार, प्रेम के बंधन में ||

भावार्थ – हमारे रसिक शिरोमणि प्रियतम श्यामसुन्दर अरी सखी ! प्रेम के बंधन में बँधे हुए हैं | जो योगियों की समाधि में भी नहीं जाते, वे ही ब्रजांगनाओं की हाथ की तालियों की ताल पर ता-थेइ-थेइ करते हुए नाचते हैं | अरी सखी ! प्रेम के बंधन में वे ऐसे बँध जाते हैं कि जिनको निरन्तर वेद की ऋचाएं खोजा करती हैं, वे ही यशोदानन्दन कान्ह बनकर ऊखल में बँध जाते हैं | प्रेम का बंधन ऐसा है कि जो अनन्त कोटि ब्रह्माण्डों का पालन करता है वही ग्वालों के मुख से ग्रास छीन – छीनकर खाता है एवं खेल में गँवार ग्वालों का घोड़ा बनता है | अरी सखी ! वे तो प्रेम के बंधन में बँधे हैं | जो स्थावर जंगम सब का संहार करते हैं वे ही यशोदा मैया के डंडे से डरते हैं | ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं कि मैं अलबेली सरकार की लीला पर बलिहार जाता हूँ क्योंकि वे प्रेम के बंधन में बँधकर मधुरातिमधुर एवं परम विलक्षण लीलाएँ करते हैं |
( प्रेम रस मदिरा प्रकीर्ण - माधुरी )
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
सर्वाधिकार सुरक्षित - राधा गोविन्द समिति

KarmaYog means performing worldly duties with your body while your mind is absorbed in the loving remembrance of God and Guru.

मन से हरि गुरु में अनुराग करना एवं तन से संसार का कर्म करना ही कर्मयोग है।

----------JAGADGURU SHRI KRIPALUJI MAHARAJ.

महाप्रभु जी कहते हैं—
आश्लिष्य वा पादरतां पिनष्टुमां अदर्शनान्मर्महतां करोतु वा।
यथा तथा वा विदधातु लम्पटो मत्प्राणनाथस्तु स एव नापरः।।

हे श्यामसुन्दर! तुम क्या कर सकते हो? तीन काम कर सकते हो।चाहे मुझसे प्यार कर लो आलिंगन करके और चाहे उदासीन हो जाओ, न्यूट्रल। और चाहे चक्र चला दो। हम सबमें तैयार हैं। हमारे प्यार में कमी नहीं होगी। इसको प्रेम कहते हैं।
क्योंकि वो तत्त्वज्ञ जान चुका हैकि जितना हम प्यार करेंगे,जितनी शरणागति होगी,
उतनी ये भी कर रहे हैं। ये बाहर कुछ भी व्यवहार करें,हम व्यवहार देखेंगे नहीं।
वो बढ़ता जायेगा उसका प्रेम।संसारी मामलों में व्यवहार के अनुसार प्यार बढ़ा-घटा, बढ़ा-घटा, ज़ीरो, अबाउट टर्न।यहाँ नाटक होता रहता है। उधर कोई डाउट(doubt) नहीं।

---- जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।

गलती न मानने का सबसे बड़ा कारण यह है कि लोग अपने को बुद्धिमान कहलाना चाहते हैं । किसी को अगर कोई मूर्ख कहे , यह किसी को बर्दाश्त नहीं होता । अगर कोई विवेकपूर्वक सोचे तो सब अल्पज्ञ ही तो हैं । सब लोगों के पास जो बुद्धि है वह काम चलाऊ ही तो है । गुरु ने भी दोष बताया तो उलटा सोचने लगा । यह प्रमुख गलती है । चाहिये तो शिष्य को यह कि अगर कोई दोष बताया जाय तो निरन्तर उसका चिन्तन करे और भविष्य में वह न होने पाये । कोशिश करने पर अवश्य ही दोष कम होते हैं , लेकिन कोशिश कम होती है अतः दोष भी कम ठीक होते हैं। बराबर वाले और बड़ों से व्यवहार करते समय अपनी वाणी पर कन्ट्रोल रखें , जवाब न दें । गुरु के प्रति तो यही सोचना काफी है कि गलती तो हमारी ही होगी ।
----जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज।

हम कह देते हैं— महाराज जी!
वो मन नहीं लगता।महाराज जी! वो, हम साधना करते हैं,तो मन संसार में जाता है।अरे! अनंत जन्म संसार में ले गये हो।ले गये हो, तो वो जाता है,
क्या करे बेचारा? अरे, भई! मन का काम जाने का है,तुम भगवान् की ओर ले जाओ, उधर जायेगा।जब चप्पल-जूता खाने पर भी वो बार-बार जाने को तैयार है, तुम्हारी आज्ञा से,तो, जो वो आनंद सिन्धु है,उसके पास जाने को क्यों मना करेगा?
उसको मना करने का अधिकार ही नहीं है।
वो तो, जो बुद्धि कहेगी, मन वो करेगा।और बुद्धि क्या कहेगी,ये डिसीजन महापुरुषों की शरण होकर के उनसे लो।शास्त्र-वेद और गुरु यही डॉक्टर हैं,
इनके द्वारा तत्त्वज्ञान प्राप्त करके उसी प्रकार मन को गवर्न करो और एक सेकंड में गवर्न नहीं कर सकोगे हमेशा के लिये।

अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते॥
अभ्यासवैराग्याभ्यां तन्निरोधः।
----- जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।

गुरु द्वारा दिया गया 'तत्त्वज्ञान' हमारे लिये रिवॉल्वर का काम करेगा। बड़ा भारी पहलवान आ रहा है वह हमें मार देगा। अरे! क्या मार देगा। रिवॉल्वर जेब में है तो भागेगा डर के मारे वो पहलवान। तो वो शक्ति है गुरु के उपदेश में कि संसार की बड़ी से बड़ी कठिन परिस्थिति का सामना भी आसानी से कर सकते हो। गुरु की आज्ञा का अगर हम पालन करते तो हम लापरवाही न करते। इसलिए अपने पतन में हम स्वयं कारण है, हमारी बुद्धि, हमारी लापरवाही और उत्थान में गुरु कृपा मानो ,हमारी बुद्धि से उत्थान कभी नहीं हुआ आजतक न होगा ,हमारी बुद्धि तो मायिक है ये तो ईश्वरीय बुद्धि महापुरुष ने दान दी कि ऐसा करो, ऐसा करो, ऐसा न करो, इस बुद्धि के दान के द्वारा भगवननाम लिया, भगवान के लिये आँसू बहाया जो कुछ भी अच्छी चीजें हमारे पास आई वो महापुरुष के द्वारा ही आई। उसकी कृपा से अच्छे काम हो रहें है और गलत काम इसलिए हो रहें है कि महापुरुष के आदेश को, उपदेश को छोड़ दिया और अपनी बुद्धि के बल पर आ गये तो हमारी बुद्धि तो गड़बड़ ही थी, उसने हमें गड़बड़ में डाल दिया बस अब मर गये, अब हम दोष दे रहें है महापुरुष को, भगवान को, इसलिए सदा यह ज्ञान रहना चाहिए कि अच्छे कार्य उनकी ही कृपा से हो रहें है लेकिन गलत कार्य में अपना दोष ही समझना चाहिये क्योकि हमने उनके आदेशों का उल्लंघन किया लापरवाही की और अपनी बुद्धि के बल पर हमने कार्य किया इसलिए पतन हो गया हमारा।
-------जगद्गुरुत्तम श्री कृपालुजी महाराज।

हमारे गुरुदेव.........'हमारे कृपालु गुरुवर'....'हमारे रखवार'...'हमारी सरकार'...!!!

हमारे गुरुदेव का आध्यात्मिक परिचय तो केवल उनकी कृपा से ही थोड़ा बहुत जाना जा सकता है।उनके दिव्य स्वरूप,उनकी क्षमता एवं भगवद विषय में दक्षता के विविध पक्ष हैं जो केवल साधक की शरणागति एवं अंत:करण की शुद्धता की अवस्था पर ही उनकी कृपा से अनुभव में आ सकता है अन्यथा बुद्धि-कौशल से या तर्क-वितर्क कुतर्क से महापुरुष को जानने की चेष्टा करना ही पागलपन है। वह कभी पकड़ में नहीं आ सकता। जब कभी किसी जीव के मन में उनके प्रति सच्ची जिज्ञासा होगी या भगवान के प्रति तीव्र लालसा का उदय होगा वह 'कृपालु महाप्रभु' तक आ ही जाता है या यूँ कहें की वो स्वयं चल कर उस तक पहुँच ही जाते हैं। लेकिन सावधान..... अगर मायावश उनसे किसी ने संसार मांग लिया जैसे मान-सम्मान,आर्थिक लाभ,रिद्धी-सिद्धि,स्वास्थ्य लाभ आदि तो फिर गुरुदेव अपने आपको छिपा लेते हैं तथा उस जीव के साथ ऐसा व्यवहार होगा कि वह वापस होकर ही रहेगा।
यहाँ तो जिसे भक्ति चाहिये,भगवत प्रेम चाहिये केवल वही टिक सकता है ऐसा अगर न होता तो अबतक इनके सत्संग में करोड़ो-अरबों की भीड़ होती। यहाँ कृपालु दरबार में भीड़ का काम नहीं यहाँ तो 'श्रीराधेश्याम ' की निष्काम भक्ति व नित उनकी सेवा मांगने वाले ही टिक सकते हैं।

गुरु के वचन,प्रवचन व दिशा निर्देश केवल मायिक शब्द या अर्थ नहीं होते। वह तो दिव्य चिन्मय एवं भगवद भाव से परिपूर्ण होते हैं। गुरु की कृपा से तो अंगूठा छाप को भी तत्त्वज्ञान हो जाता है वरना तो वही वचन ब्रहस्पति,सरस्वती की भी बुद्धि कुंठित कर दे। जो जिस कोटि का साधक होता है वह अपनी स्थिति के अनुसार गुरु के आदेश अथवा प्रवचन को आत्मसात कर पाता है। वैसे तो सभी का अनुभव येही है की ऐसा दिव्य विलक्षण प्रवचन आजतक तो पहले कभी कहीं नहीं सुना।ऐसा लगता है जैसे सभी आप्त ग्रंथ,ऋचाएँ सामने खड़ी हों कि उनके कुछ छंध,कुछ दोहे,कुछ श्लोक,कुछ आयते श्री महाराजजी अपने श्रीमुख से बोल दें और वे धन्य हो जायें। भगवत तत्त्व के प्रतिपादन में उद्धरणों (quotations) की भरमार रहती है,वेद,पुराण,गीता,भागवत,बाइबल,रामायण,क़ुरान आदि से उदाहरण प्रस्तुत करके गुरुदेव सबका समन्वय करते हैं। ऐसे समन्वयवादी गुरु को जगद्गुरुत्तम की उपाधि प्रदान कर आध्यात्मिक जगत गौरवान्वित हुआ है।

अरे! इस सृष्टि की क्या बात,स्वर्ग की जो सृष्टि है, उसका जो सम्राट है इन्द्र,वो भी इसी प्रकार काम, क्रोध लोभ, मोह में परेशान है।
सुरपतिर्ब्राह्मं पदं याचते।
वो ब्रह्मा का पद चाहता है। कितने प्राइम मिनिस्टर, उनके बाप भिखारी थे।
कितने अरबपति खरबपति जो, उनके बाप ठेला ले के चलते थे,प्रारब्ध के कारण हो गये इतने बड़े,लेकिन हम पूछते हैं, अन्दर का क्या हाल है?
जितना बड़ा आदमी है, उतना ही परेशान है।

---- जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।

सतयुग वगैरह में हजारों योगी हुए और जब माया को नहीं पार कर सके, तो श्रीकृष्ण की भक्ति करने आये,तो उनके शरणागत होकर,उनसे माया की निवृत्ति की भिक्षा माँगे, क्योंकि—
तपस्विनो दानपरा यशस्विनो मनस्विनो मंत्रविदः सुमङ्गलाः।
क्षेमं न विन्दन्ति विना यदर्पणं तस्मै सुभद्रश्रवसे नमो नमः॥
(२-४-१७, भागवत)
कितना ही बड़ा तपस्वी हो,योगी हो, ज्ञानी हो, कर्मी हो,अगर श्रीकृष्ण की भक्ति नहीं करता,तो पतन अवश्य होगा,माया धर दबोचेगी उसको, बच नहीं सकता कोई।
----- जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।

सकल धर्म को मूल हैं , एक कृष्ण भगवान्।
मूल तजे सब शूल हैं , कर्म , योग अरु ज्ञान।।६५।।

भावार्थ - समस्त धर्मों का मूलाधार श्रीकृष्ण ही हैं। शेष सब शाखा , उपशाखा , पत्र , पुष्पादि के समान हैं यदि मूल काट दिया जाय तो शेष सब ढह जायेंगे।
भक्ति शतक (दोहा - 65)
----जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
(सर्वाधिकार सुरक्षित - राधा गोविन्द समिति)