श्री महाराजजी से प्रश्न: संसार में भी तो स्त्री-पति आदि में प्रेम देखा जाता हैं। तो अंतर क्या हैं?
Ans:- संसार में कोई व्यक्ति किसी से इसलिए प्रेम नहीं कर सकता क्योंकि प्रत्येक जीव स्वार्थी है। वह आनंद चाहता है। अस्तु, लेने-लेने की भावना रखता है। जब दोनों पक्ष लेने-लेने की घात में है तो मैत्री कितने क्षण चलेगी? तभी तो स्त्री-पति,बाप-बेटे में दिन में दस बार टक्कर हो जाती है। जहाँ दोनों लेने-लेने के चक्कर में हैं, वहाँ टक्कर होना स्वाभाविक है।
कामना 'प्रेम' का विरोधी तत्त्व है। लेने-लेने का नाम कामना है, एवम् देने-देने का नाम प्रेम है, तथा लेने-देने का नाम व्यापार है। जिसमें प्रेमास्पद से कुछ याचना की भावना हो, वह प्रेम नहीं है। जिसमें सब कुछ देने पर भी तृप्ति न हो, वही 'प्रेम' है।
ब्रज देवियों का प्रेम इस प्रकार था कि जिस प्रकार भी श्रीकृष्ण प्रसन्न रहें, वही वे सब करती थी।
Ans:- संसार में कोई व्यक्ति किसी से इसलिए प्रेम नहीं कर सकता क्योंकि प्रत्येक जीव स्वार्थी है। वह आनंद चाहता है। अस्तु, लेने-लेने की भावना रखता है। जब दोनों पक्ष लेने-लेने की घात में है तो मैत्री कितने क्षण चलेगी? तभी तो स्त्री-पति,बाप-बेटे में दिन में दस बार टक्कर हो जाती है। जहाँ दोनों लेने-लेने के चक्कर में हैं, वहाँ टक्कर होना स्वाभाविक है।
कामना 'प्रेम' का विरोधी तत्त्व है। लेने-लेने का नाम कामना है, एवम् देने-देने का नाम प्रेम है, तथा लेने-देने का नाम व्यापार है। जिसमें प्रेमास्पद से कुछ याचना की भावना हो, वह प्रेम नहीं है। जिसमें सब कुछ देने पर भी तृप्ति न हो, वही 'प्रेम' है।
ब्रज देवियों का प्रेम इस प्रकार था कि जिस प्रकार भी श्रीकृष्ण प्रसन्न रहें, वही वे सब करती थी।
------ श्री महाराज जी ।
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