साधक
को अपनी शरणागति पर ध्यान देना चाहिए।वैसे आप लोगों को लगता है कि हम
पूर्ण शरणागत हैं लेकिन वस्तुतः ऐसा है नहीं। छोटी सी भी बात आप से कही
जाती है, आपका तुरंत उत्तर होता है - नहीं हमने तो ऐसा नहीं किया अथवा ऐसा
किया तो नहीं था न जाने कैसे हो गया? बाहर से आप मान भी लें लेकिन भीतर से
अपनी गलती स्वीकार नहीं करते। गुरु आपके अन्दर की बात नोट करते हैं, वह
परीक्षा भी लेता है। और साधक परीक्षा में फेल हो गया तब भी गुरु बारम्बार
परीक्षा लेना बंद नहीं करता।जिस कक्षा का जीव है उसी कक्षा का परचा उसको
दिया जाता है, अगर आप परीक्षा देने से घबराएंगे तो आप कभी भी भगवद प्राप्ति
नहीं कर सकेंगे। इस प्रकार बार-बार परीक्षा देते हुए हमें शरणागति को
पूर्ण करना है।
------सुश्री श्रीधरी दीदी (प्रचारिका), जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाप्रभु।"
------सुश्री श्रीधरी दीदी (प्रचारिका), जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाप्रभु।"
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