Wednesday, February 8, 2017

कलि सम युग नहिं गोविन्द राधे।
हरि नाम हरि ध्यान हरि ते मिला दे।।
----- जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।

वे(हरि-गुरु) हमारी रक्षा करते हैं, वे हमारी रक्षा कर रहे हैं, वे आगे भी हमारी रक्षा करेंगे, इस पर विश्वास कर लो।
----श्री महाराजजी।


श्री महाराजजी के सभी सत्संगीयो के लिए हमारी प्यारी-प्यारी दीदियों(VSK) का सन्देश:
हमारी प्यारी-प्यारी दीदियों की आज्ञा है की सभी सत्संगी कुसंग से जितना हो सके उतना बचे,अधिक से अधिक संकीर्तन करें,आँसू बहाये,श्री महाराजजी ने हर एक जीव को बेहिसाब प्यार दिया है हम सबको पहचान ही श्री महाराजजी से मिली है,आज श्री महाराजजी अदृश्य जरूर हो गए हैं मगर क्या वो अपने बच्चों से उनके लिए दिन रात आँसू बहाने वालों से क्षण भर के लिए भी दूर रह सकते हैं????.....श्री महाराजजी का प्यार हमे अनंत जन्मों तक भी लगातार मिलता रहे तो भी हम उनकी असल महिमा उनकी करुणा उनके वात्सल्य को नहीं समझ पायेंगे। क्योंकि हमारा अंत:करण ही कीचड़ से भी अधिक मलिन है पर हमारे सिर्फ साधना और सिद्धान्त ही काम आना है इसलिए रोज़ नियमित रूप से श्री महाराजजी की स्पीच सुननी है और रूपध्यान करके आँसू बहाकर साधना करनी है ताकि हमारे प्रभु फिर हमें अपने दर्शन का सौभाग्य प्रदान करें।
राधे-राधे।
हम देखे श्यामलगात रे |
मधुर मधुर धुनि बेनु बजावत, गैयन पाछे जात रे |
काँधे कनक लकुटि कामरि अरु, पीतांबर फहरात रे |
चितवनि – चोट चलावत मुरि मुरि, मंद मंद मुसकात रे |
सँग धनसुख मनसुख श्रीदामा, अगनित सखन जमात रे |
झूमि ‘कृपालु’ चलत पुनि देखत, घूमि यशोमति मात रे ||

भावार्थ – एक सखी अपनी अंतरंग सखी के प्रश्न का उतर देती हुई कहती है कि हमने श्यामसुन्दर को देखा है | मधुर - मधुर मुरली बजाते हुए गायों के पीछे जा रहे थे | उनके कंधे पर सुवर्ण की लठिया एवं काली कामरी सुशोभित थी तथा पीताम्बर फहरा रहा था | वे मुड़ मुड़कर कटाक्षपात करते हुए देख रहे थे एवं मन्द – मन्द मुस्करा रहे थे | उनके संग में धनसुख, मनसुख, श्रीदामा आदि सहस्त्रों सखाओं का समूह था | ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं कि श्यामसुन्दर झूमते हुए आ रहे थे एवं बार - बार घूम - घूमकर प्रेम के कारण यशोदा मैया को देखते जाते थे |
( प्रेम रस मदिरा श्रीकृष्ण – माधुरी )
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
सर्वाधिकार सुरक्षित - राधा गोविन्द समिति
ए मनुष्यों! मानव देह प्राप्त हुआ है , भगवतप्राप्ति के लिये केवल, इसकाे मत गँवाओ, व्यर्थ भाेग विलास में केवल लिप्त रह कर। पतन के लिये ताे अन्य याेनी है। संसार मे रह कर तुम संसार का उपयाेग कराे दुरुपयाेग नही, और संसार मे अनासक्त हाेकर भगवतप्राप्ति करो , भक्ति कराे भगवान् की क्योंकि मानव देह का एक मात्र लक्ष्य भगवतप्राप्ति ही है,अन्य कुछ नहीं। नहीं ताे ये अनमाेल खजाना मानव देह छिन जायेगा और कुकर शुकर की योनि मे भेज देंगें भगवान।
------ जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज।

हजारों साधनायें करते रहो,साधन कर-कर के अनंत जन्म बिता दो लेकिन भक्ति नहीं मिलेगी। भक्ति तो शरणागति से मिलती है,यानी साधनहीन भाव से मिलती है। साधन के बल को भुला दो। " साधनहीन दीन अपनावत"है वो।
नाथ सकल साधन ते हीना। भीतर से यह भाव बनाना होगा। करेक्ट,सेंट परसेंट।
------- जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।


राग और द्वेष दो ही एरिया हैं सारे संसार में,बाँधे हुए है हम सबको। तो राग करना है तो बस हरि से और द्वेष करना है तो काम से क्रोध से लोभ से ईर्ष्या से द्वेष से करो। ये आने न पावें, हमारे हृदय को गंदा न करने पांवे। हमारी वह पूँजी है। हम जो कमाते हैं ,एक बार भी जो भगवान् का नाम लेते हैं,ये हमारी कमाई है। इसमें गड़बड़ न करे कोई।
---जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज।

WISHING A VERY-VERY HAPPY BIRTHDAY TO DEAREST BADI DIDI .
MESSAGE FROM BADI DIDI TO ALL DEVOTEES AROUND THE GLOBE.
DEAR DEVOTEES......!!!
All of you are very dear to Shri Maharajji.
you are blessed with the divine grace of Shri Maharajji.
Shri Maharajji worked very hard with us,and now we have to see that all his cherished dreams become fully realised.Let us pledge that we will vehemently follow his teaching and example by spending every moment of our life in the loving remembrance of God and Guru. While dedicating our lives in devotional service to our guru,we must further complete those projects he launched.
Shri Maharajji is already with us and will continue to be so forever.Guru takes care of the welfare of those who have surrendered to him.we should continue to strengthen our faith in his boundless benevolence and continue to listen to his Divine words again and again.

...........H.H. VISHAKHA TRIPATHI(Badi Didi).
...........PRESIDENT,JKP,BHAKTI DHAM,MANGARH.
DON'T MISS FACEBOOK LIVE BROADCAST: FAGOTSAV to be celebrated by Sushri Shreedhari Didi (Preacher of Jagadguruttam Shri kripaluji Maharaj) on 9th february,2017.
This function will be broadcast 'FaceBook Live' for all Devotees around the globe ,Here in your favourite Group.SO DON'T MISS.
TIME: 12P.M. TO 2P.M.
जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज की प्रचारिका सुश्री श्रीधरी दीदी द्वारा दिनाँक 9 फरवरी 2017 को दोपहर 12 बजे से 2 बजे तक 'फागोत्सव' का आयोजन किया जायेगा। इस कार्यक्रम का आनंद आप घर बैठे इसी ग्रुप में 'facebook live'(सीधा प्रसारण) के माध्यम से ले सकते हैं।
जय श्री राधे।
श्रीधरी दीदी द्वारा जगद्गुरु कृपालु परिषत की अध्यक्षा डा० विशाखा त्रिपाठी (बड़ी दीदी) के पावन जन्मदिवस के उपलक्ष्य में बधाई संदेश:
श्री कृपालु महाप्रभु चरणानुरागी भक्तवृंद !
आप सभी को हमारी परमप्रिय, परम आदरणीया ज्येष्ठा गुरुपुत्री डा॰ विशाखा त्रिपाठी ( बड़ी दीदी ) जी के पुनीत जन्मदिवस की हार्दिक बधाई ।
हमारे परम पूज्य गुरुवर जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ने अपनी तीनों भगवत्परायणा सुपुत्रियों के रूप में जो अनमोल त्रिरत्न हमें प्रदान किये हैं, उनकी इस कृपा के लिए समस्त साधक समुदाय श्री महाराज जी का ऋणी है।
क्योंकि आज श्री महाराज जी की प्रत्यक्ष अनुपस्थिति में गुरु भक्ति की आदर्श स्वरुपा, इन्हीं तीनों JKP की अध्यक्षाओं के संरक्षण में ही सभी साधक पूर्ववत् श्री महाराज जी की दिव्य उपस्थिति का, उनकी कृपाओं का अनुभव करते हुए, गुरुधाम इत्यादि में जाकर गुरुनिर्दिष्ट साधना का पूर्ण लाभ ले रहे हैं ।
और भक्ति त्रिवेणी रूपी तीनों दीदीयों में भी भगवती गंगा स्वरुपा सिरमौर हैं हमारी प्यारी बड़ी दीदी जो भक्तिधाम मनगढ़ की अध्यक्षा हैं, जिनकी प्रत्येक आज्ञा का पालन स्वयं मंझली दीदी ( सुश्री डा॰ श्यामा त्रिपाठी ) व छोटी दीदी ( सुश्री डा॰ कृष्णा त्रिपाठी ) भी परम आदरपूर्वक करती हैं ।
देवनदी के समान ही शुभ्रवर्णी बड़ी दीदी अपने उज्ज्वल स्वरुप से हटात् सभी का मन मोह लेती हैं । और सभी साधकों को अपने ममतामयी आँचल की छाया प्रदान करके, प्यार – दुलार देकर गंगा मैया के शीतल सुखद स्पर्श सा ही सुख प्रदान करती हैं । इनके जीवन का एकमात्र उद्देश्य गुरुसेवा ही है ।
श्री महाराज जी के अधूरे प्रोजेक्ट्स को पूरा करना, उनकी महिमा को जगत में प्रकाशित करने के लिए नये प्रोजेक्ट्स का निर्माण, विभिन्न साधना शिविरों का आयोजन, येन केन प्रकारेण समस्त साधकों को श्री महाराज जी के सिद्धांतों के अनुकरण हेतु प्रेरित करना, विभिन्न लीलाओं के मंचन, ऑडियो – विडियो इत्यादि के माध्यम से श्री महाराज जी के सिद्धांत ज्ञान का प्रचार करना, हरि गुरु के विभिन्न विग्रहों एवं झांकियों के निर्माण के माध्यम से साधकों की भगवद्भावना को द्विगुणित करना, विभिन्न पर्वों के माध्यम से श्री महाराज जी की दिव्य उपस्थिति का अनुभव करवाना, श्री महाराज जी द्वारा संचालित समस्त जनकल्याणकारी योजनाओं का विस्तार करना बस यही सब दैवीय कार्य उनकी दिनचर्या के प्रमुख अंग हैं ।
बड़ी दीदी के नाम के अनुरूप ही उनके समस्त कार्य भी बड़े – बड़े होते हैं ।
भगवती भागीरथी रूपी दीदी के भगीरथ प्रयत्नों के लिए अनेक अवार्ड्स भी उन्हें प्राप्त हुए हैं ।
हम सभी परम सौभाग्यशाली हैं जो ऐसी ममतामयी दीदी का सहज सान्निध्य हमें प्राप्त है । आज बड़ी दीदी के पुनीत जन्मदिवस के उपलक्ष्य में ,मैं समस्त साधकों की ओर से उनके चरण कमलों में बारम्बार प्रणाम करती हूँ ।
और समस्त साधकों से निवेदन करती हूँ कि गुरु सेवा का दृढ़ संकल्प लेकर उनके जन्मदिवस को सार्थक बनायें क्योंकि यही बड़ी दीदी के लिए सर्वोपरि उपहार है, यही उनकी अभिलाषा है कि हर साधक का जीवन एकमात्र गुरुसेवा में ही व्यतीत हो, इसी में उनकी सर्वाधिक प्रसन्नता है ।
अतएव आइये इस स्वर्णिम अवसर पर अपने मानव जीवन को सफल बनाने के लिए हम सभी श्री महाराज जी के चरणों में यही प्रार्थना करें –
भुक्ति ना दे मुक्ति ना दे वैकुण्ठ ना दे ।
गुरु सेवा में ही मेरा जन्म बिता दे ।।
एक बार पुन: समस्त कृपालु परिवार को हमारी प्यारी – प्यारी बड़ी दीदी के जन्मदिवस की बड़ी – बड़ी बधाईयाँ व शुभकामनायें ।
आपकी दीदी
श्रीधरी

Saturday, February 4, 2017

भगवान् तथा महापुरुष शुद्ध शक्ति हैं। महापुरुष का संग सांसारिक हानि सहकर भी करना श्रेयस्कर है। महापुरुष भले ही प्रेमयुक्त व्यवहार करें , उदासीन रहें अथवा विपरीत व्यवहार ही क्यों न करें । सबमें हमारा कल्याण है।
--------सुश्री श्रीधरी दीदी (प्रचारिका),जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज।


क्षण क्षण हरि गुरु स्मरण में ही व्यतीत करो। पल पल मृत्यु की और बढ़ रहे हो और संसार में बेहोश हो

  ------सुश्री श्रीधरी दीदी (प्रचारिका), जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाप्रभु।

साधक को अपनी शरणागति पर ध्यान देना चाहिए।वैसे आप लोगों को लगता है कि हम पूर्ण शरणागत हैं लेकिन वस्तुतः ऐसा है नहीं। छोटी सी भी बात आप से कही जाती है, आपका तुरंत उत्तर होता है - नहीं हमने तो ऐसा नहीं किया अथवा ऐसा किया तो नहीं था न जाने कैसे हो गया? बाहर से आप मान भी लें लेकिन भीतर से अपनी गलती स्वीकार नहीं करते। गुरु आपके अन्दर की बात नोट करते हैं, वह परीक्षा भी लेता है। और साधक परीक्षा में फेल हो गया तब भी गुरु बारम्बार परीक्षा लेना बंद नहीं करता।जिस कक्षा का जीव है उसी कक्षा का परचा उसको दिया जाता है, अगर आप परीक्षा देने से घबराएंगे तो आप कभी भी भगवद प्राप्ति नहीं कर सकेंगे। इस प्रकार बार-बार परीक्षा देते हुए हमें शरणागति को पूर्ण करना है।
------सुश्री श्रीधरी दीदी (प्रचारिका), जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाप्रभु।"
The Guru imparts spiritual knowledge, removes the darkness of ignorance and guides you towards the attainment of your supreme goal. Living in the association of a Saint for some time, if you find yourself more deeply attached to God and detached from the world, this is the surest proof that he is a God-realised soul. You could never have imagined giving so much time to devotion of God. It was only made possible due to the grace of your Guru. You should always realise the grace of your Guru to be instrumental in your spiritual progress.
--------JAGADGURU SHRI KRIPALU JI MAHARAJ.
Devotion is the most powerful spiritual practice. It destroys unauspiciousness of past karmas & creates auspiciousness by cleansing the mind.
भक्ति सबसे शक्तिशाली आध्यात्मिक साधना है । वह पूर्व कर्मों के अशुभ संस्कारों को नष्ट करके मन को शुद्ध करती है तथा नवीन शुभ संस्कारों की रचना करती है ।
......जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज।


श्री महाराजजी से प्रश्न: संसार में भी तो स्त्री-पति आदि में प्रेम देखा जाता हैं। तो अंतर क्या हैं?
Ans:- संसार में कोई व्यक्ति किसी से इसलिए प्रेम नहीं कर सकता क्योंकि प्रत्येक जीव स्वार्थी है। वह आनंद चाहता है। अस्तु, लेने-लेने की भावना रखता है। जब दोनों पक्ष लेने-लेने की घात में है तो मैत्री कितने क्षण चलेगी? तभी तो स्त्री-पति,बाप-बेटे में दिन में दस बार टक्कर हो जाती है। जहाँ दोनों लेने-लेने के चक्कर में हैं, वहाँ टक्कर होना स्वाभाविक है।
कामना 'प्रेम' का विरोधी तत्त्व है। लेने-लेने का नाम कामना है, एवम् देने-देने का नाम प्रेम है, तथा लेने-देने का नाम व्यापार है। जिसमें प्रेमास्पद से कुछ याचना की भावना हो, वह प्रेम नहीं है। जिसमें सब कुछ देने पर भी तृप्ति न हो, वही 'प्रेम' है।
ब्रज देवियों का प्रेम इस प्रकार था कि जिस प्रकार भी श्रीकृष्ण प्रसन्न रहें, वही वे सब करती थी।

------ श्री महाराज जी ।

जयति जय, जय सद्गुरु महाराज |
छके युगल रस रास सरस जनु, मूर्तिमान रसराज |
बिनु कारण करुणाकर जाकर, अस स्वभाव भल भ्राज |
बरबस पतितन देत प्रेमरस, अस रसिकन सरताज |
डूबत आपु डुबावत जन कहँ, प्रेमसिंधु - ब्रजराज |
हौं ‘कृपालु’ गुरुचरण शरण गहि, भयो धन्य जग आज ||

भावार्थ - श्री सद्गुरुदेव की जय हो, जय हो | प्रेमानन्द में निमग्न गुरुदेव मानो श्यामा - श्याम के मूर्तिमान रसावतार ही हैं | उनका सहज स्वभाव ही है अकारण करुणा करके जीवोद्धार करना | गुरुदेव ऐसे रसिक शिरोमणि हैं कि पतितों को भी हठात् प्रेमानन्द प्रदान कर देते हैं; उस रस में स्वयं भी डूब जाते हैं; साथ ही शरणागत शिष्य को भी डुबा देते हैं | ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं मैं तो उन सद्गुरु के चरणों की शरण ग्रहण करके आज धन्य हो गया |
( प्रेम रस मदिरा सद्गुरु - माधुरी )
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
सर्वाधिकार सुरक्षित - राधा गोविन्द समिति
अरे कृत्घन मन! प्रभु ने तुझे प्रेम मार्ग का पथिक बनाया है, फिर तुझ में घृणा, अहंकार, ईर्ष्या, द्वेष जैसी मलिन वृत्तियों का वास क्यों? क्या यह अनवरत नामापराध की क्षृंखला तुझे अकारण-करुण, कृपासिन्धु, दीनबंधु स्वामी, सखा, सुत, पति रूप महाप्रभु के श्री चरणों से प्रथक न कर देगी। फिर तू कहाँ जायेगा? हे मन! तेरे जैसे पतित के लिए यदि कोई दूसरा स्थान नहीं ,तो अब बहुत हो गया, छोड़ दे अपनी जन्म-जन्म की आदत और अपने एकमात्र प्यारे श्री महाराजजी के चरणों का प्रेम-पुजारी बनकर उनकी कोटी-कोटी कृपाओं का चिंतन करते हुए एकाग्र,अनन्य व निष्काम भाव से उनकी सेवा में लग जा।
------सुश्री श्रीधरी दीदी (प्रचारिका), जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाप्रभु।
It is a matter of great astonishment that one does not give up hope in trying to attain happiness in the world which does not have a trace of Bliss, but one so easily gives up hope on the path to God, where the attainment of Infinite Bliss is guaranteed.
.........SHRI MAHARAJJI.

संसारी दोष कितने कम हुए, हमे इस पर हर समय दृष्टि रखनी है । हमारे स्वभाव मेँ अहमता, ममता कितनी कम हुई ,इस और ध्यान देना है । स्वाभिमान कितना कम हुआ,अपने अपमान का अनुभव होना कितना कम हुआ,आत्म-प्रशंसा कितनी अचछी लगती है । संसारी विषयों के अभाव मेँ कितना दुख होता है,उनके मिलने मेँ कितना सुख मिलता है, यह सब अपनी आध्यात्मिक उन्नति को नापने का सबसे बढ़िया पैमाना है।
------जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।


हाय मोरा, पिया बिनु जिया घबराये |
बरसों बीत गये गये घर सों, परसों कितक विहाये |
कहँ लौं मन समुझाउँ सखी अब, मनहूँ भये पराये |
सुधा समान बैन सखियन के, विष सम मोहिं जनाये |
छिन आँगन छिन बाहर भाजति, कितहूँ चैन न आये |
कबहूँ तो ‘कृपालु’ पिय हियहूँ, ‘हाय !’ लगेगी जाये ||

भावार्थ – ( जब श्यामसुन्दर गोपियों को छोड़कर मथुरा चले गये तब एक विरहिणी अपनी विरह – व्यथा को अपनी अन्तरंग सखी से बताती है |)
हाय ! सखी ! मेरा मन प्रियतम श्यामसुन्दर के बिना अत्यन्त ही घबरा रहा है | अरी सखी ! उन्होंने कहा था कि परसों ही आ जायेंगे किन्तु बरसों बीत गये उनका अभी तक परसों नहीं समाप्त हुआ | अरी सखी ! अपने मन को किस प्रकार एवं कहाँ तक समझाऊँ और अगर समझाऊँ भी तो वह भी तो उन्हीं के पास चला गया है, फिर हमारी बात मन समझ कैसे सकता है ? मेरी परम अन्तरंग सखियों के अमृततुल्य मीठे वचन भी मुझे विष के समान प्रतीत हो रहे हैं | मैं क्षण – क्षण में कभी घर में आती हूँ कभी ‘प्रियतम आते होंगे’, इस आशा में भागती हुई घर से बाहर जाती हूँ किन्तु कहीं भी चैन नहीं मिलता | ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं कि अरी विरहिणी ! तू घबरा मत, कभी तो प्यारे श्यामसुन्दर के हृदय में तेरी यह ‘हाय ! हाय !’ की ध्वनि अवश्य ही प्रभाव डालेगी एवं उन्हें विवश होकर आना पड़ेगा |

( प्रेम रस मदिरा विरह – माधुरी )
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
सर्वाधिकार सुरक्षित - राधा गोविन्द समिति
परमार्थ का जो भी काम करो उसमें ये समझो कि ये भगवान और गुरु की कृपा ने करा लिया,वरना मैं करता भला।
----- जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज।


हृदय में ज्ञान का दीपक जलाने वाले गुरु साक्षात भगवान ही हैं। जो पुरुष उन्हे मनुष्य समझते हैं उनका समस्त शास्त्र-श्रवण हाथी के स्नान के समान व्यर्थ है।
-----जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज।


धरो मन! युगल माधुरी ध्यान।
मनमोहन मोहिनि श्यामा अरु,मोहिनि मोहन कान्ह।
यह 'कृपालु' रस रसिकहिं जानत, जो नित कर रह पान।।

------- जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज।

संसार में हमने जितने काम किये हैं, अभ्यास से आगे बड़े हैं। ये बड़े बड़े नट कमाल करते हैं जो, जिनको आप दूर से बैठे देखते हैं खुश होते हैं। वाह भाई! वाह! कमाल कर दिया। वह कैसे कमाल कर दिया उसने? अभ्यास से । बस। वह भी हमारी तरह था पहले। अभ्यास करके यहाँ पहुँच गया वह। संसार में तो हम सर्वत्र अभ्यास करके आगे बड़े है। तो फिर भगवान् के एरिया में निराश क्यों हों। और कोई सूरत भी नहीं। अगर कोई कहे निराश होकर बैठ जाएँगे हम भगवत्प्राप्ति से बाज आये। तो 84 लाख घूमने से बाज आओगे क्या? वो तो करना पड़ेगा। एक साइड में तो जाना ही पड़ेगा आपको। इसलिये घबड़ाना नही चाहिये अभ्यास लगातार करतें रहें।
रसरी आवत जात ते सिल पर परत निशान।
अभ्यास में बहुत बड़ी शक्ति है।
--- जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।