मानव
देह तो कभी-कभी मिलता है। लाखों वर्षों के बाद, बाकी योनियाँ मिला करती
हैं। कुत्ते बने, गधे बने, बिल्ली बने, मच्छर बने, दुःख भोगे मर गये, फिर
दुःख भोगे फिर मर गये। लेकिन कर्म करने का अधिकार और योनियों में नहीं है,
स्वर्ग में भी नहीं है। - वहाँ भी भोग है, जैसे कुत्ता-बिल्ली ये भोग योनि
है। ऐसे ही स्वर्ग के देवता भी हैं। वहाँ भी कर्म नहीं हो सकता, भक्ति नहीं
हो सकती। केवल मानव देह में मनुष्य शरीर, जिसको हम विषय सेवन में बिता
देते हैं अथवा खा - पीकर किसी प्रकार। बेटे से कहते हैं-
बेटा मेरी तो बीत गई अब तुम अपनी फ़िक्र करो। पिता जी आपकी क्या बीत गई,
देखो अब सत्तर के हो गये, अस्सी के हो गये, नब्बे के हो गये। पिता जी ! तो
इसके बाद फिर क्या होगा ? भगवान् को प्यारे हो जायेंगे। भगवान् के प्यारे
ऐसे हो जाओगे- साधना तो किया नहीं पूरे जीवन भर बेटे की साधना की, बाप की,
माँ की, बीबी की, पति की, इनकी भक्ति की और मरने के बाद क्या आशा कर रहे हो
गोलोक, बैकुण्ठ मिलेगा। जिसमें प्यार होता है मरने के बाद उसी की प्राप्ति
होती है। यदि तुम हरि गुरु से प्यार करते हो तो उनका लोक मिलेगा और यदि
तुम बाप, बेटे, माँ, पति, बीबी, इनसे प्यार करते हो तो ये कुत्ता , बिल्ली ,
गधा बनेंगे तो तुमको भी वही योनि मिलेगी। बड़ी सीधी सी बात है।
----- जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
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