"कृपालु अनंत कृपालु कथा अनंता"......!!!
'कृपालु'(अकारण दया,कृपा करने वाले) - यह सुमधुर नामधारी श्री कृपालु गुरुदेव ही हम सबके प्राणप्रिय गुरुदेव हैं जो रसिक शिरोमणि श्री कृष्ण के महाभाव रस में सदा स्नात रहते हैं यानि डूबे हुए रहते हैं उसी रस से। नाना प्रकार के मज़हब,धर्मों आदि के विभिन्न उपासक,साधक जो उन्हे अपना गुरु,रहबर,spiritual guide,मानकर साधना करते हैं,अपने-अपने अनुभवों के आधार पर उन्हे अलग-अलग अवतारों में देखता है। वे श्यामा-श्याम के रस-मानसरोवर में बाल-हंस की भाँति नित्य विहार करते हैं,जो रसिकों की नगरी वृन्दावन के भी न केवल रसिक प्रमुख हैं वरन जो श्यामसुंदर के उत्तुंग उफनते प्रेम-रस-ज्वार में सतत अनवरत डूबे रहते हैं,ऐसे हैं हमारे 'कृपालु सरकार'....... पापीजन जो उनकी शरण में चले जाते हैं उनके लिए वे श्री कृपालु-महाप्रभु(आवागमन रूपी संसार से) दिव्य धाम(नित्य सनातन परमानंदमय स्थान) तक पहुंचाने वाली (सुदृढ़) सीढ़ी हैं। इतना ही नहीं,सच्चे हृदय से बिलख-बिलखकर प्रायश्चित के आँसू बहाते हुए आतरनाद कर जो भी पापात्मा एक बार भी उनके चरणों में 'त्राहि माम,पाहि माम' पुकारते हुए गिर जाता है तो श्री गुरुदेव उसकी कातर पुकार सहन नहीं कर पाते,विह्वल होकर न केवल उसे गले ही लगा लेते हैं,बल्कि उसके हाथ बिक कर अपने आपको ही उसे समर्पित कर देते हैं। जितने सच्चे हम होंगे,उतने ही वो भी बल्कि उससे कई ज्यादा आपका योगक्षेम वहन करेंगे। वे सरल के लिए अत्यंत सरल,चालाक के लिए अत्यंत चालाक हैं।उनसे जीतना असंभव है।वे सिर्फ आँसुओं से,सच्ची पुकार प्रभु को पाने की जिस हृदय में उत्कंठा हो उसीसे रीझते हैं। उनको कोई जबरदस्ती रिझा नहीं सका,पैसे का अहंकार,पोस्ट का अहंकार,अन्य कई बल लिए जो उनके पास चला जाता है,उसकी और तो देखना भी पसंद नहीं करते गुरुदेव।और वो अहंकारी बेचारा उल्टे पैर वहाँ से चल देता है,अहंकार से तो सख्त परहेज है उनको। बड़े-बड़े अहंकारी लोग उनके यहाँ आए,लेकिन जिसने अपनी ज्ञान गठरिया उतार के फेंक दी,वो ही यहाँ टिका है। इनको आजतक विश्व में कोई भी चैलेंज नहीं दे सका ज्ञान में ,सब को अंदर ही अंदर पता है कौन है ये........बस उन बेचारों का अहंकार,मिथ्या ज्ञानभिमान उनको यहाँ आने नहीं देता। और आ भी जाये तो महाराजजी के यहाँ टिक ही नहीं सकता,वो लोग वास्तव में दया के पात्र हैं जो इस समय विश्व की महानतम विभूति से अपने दंभ की वजह से दूर हैं,अभी भी समय है,अहंकार त्याग दीजिये,और कृपालु महाप्रभु को सुनिए,समझिए,और उनकी शरण ग्रहण कर उनके द्वारा निर्दिष्ट साधना करके अपने परम चरम लक्ष्य भगवदप्राप्ति तक पहुचने का प्रयास कीजिये।
'कृपालु'(अकारण दया,कृपा करने वाले) - यह सुमधुर नामधारी श्री कृपालु गुरुदेव ही हम सबके प्राणप्रिय गुरुदेव हैं जो रसिक शिरोमणि श्री कृष्ण के महाभाव रस में सदा स्नात रहते हैं यानि डूबे हुए रहते हैं उसी रस से। नाना प्रकार के मज़हब,धर्मों आदि के विभिन्न उपासक,साधक जो उन्हे अपना गुरु,रहबर,spiritual guide,मानकर साधना करते हैं,अपने-अपने अनुभवों के आधार पर उन्हे अलग-अलग अवतारों में देखता है। वे श्यामा-श्याम के रस-मानसरोवर में बाल-हंस की भाँति नित्य विहार करते हैं,जो रसिकों की नगरी वृन्दावन के भी न केवल रसिक प्रमुख हैं वरन जो श्यामसुंदर के उत्तुंग उफनते प्रेम-रस-ज्वार में सतत अनवरत डूबे रहते हैं,ऐसे हैं हमारे 'कृपालु सरकार'....... पापीजन जो उनकी शरण में चले जाते हैं उनके लिए वे श्री कृपालु-महाप्रभु(आवागमन रूपी संसार से) दिव्य धाम(नित्य सनातन परमानंदमय स्थान) तक पहुंचाने वाली (सुदृढ़) सीढ़ी हैं। इतना ही नहीं,सच्चे हृदय से बिलख-बिलखकर प्रायश्चित के आँसू बहाते हुए आतरनाद कर जो भी पापात्मा एक बार भी उनके चरणों में 'त्राहि माम,पाहि माम' पुकारते हुए गिर जाता है तो श्री गुरुदेव उसकी कातर पुकार सहन नहीं कर पाते,विह्वल होकर न केवल उसे गले ही लगा लेते हैं,बल्कि उसके हाथ बिक कर अपने आपको ही उसे समर्पित कर देते हैं। जितने सच्चे हम होंगे,उतने ही वो भी बल्कि उससे कई ज्यादा आपका योगक्षेम वहन करेंगे। वे सरल के लिए अत्यंत सरल,चालाक के लिए अत्यंत चालाक हैं।उनसे जीतना असंभव है।वे सिर्फ आँसुओं से,सच्ची पुकार प्रभु को पाने की जिस हृदय में उत्कंठा हो उसीसे रीझते हैं। उनको कोई जबरदस्ती रिझा नहीं सका,पैसे का अहंकार,पोस्ट का अहंकार,अन्य कई बल लिए जो उनके पास चला जाता है,उसकी और तो देखना भी पसंद नहीं करते गुरुदेव।और वो अहंकारी बेचारा उल्टे पैर वहाँ से चल देता है,अहंकार से तो सख्त परहेज है उनको। बड़े-बड़े अहंकारी लोग उनके यहाँ आए,लेकिन जिसने अपनी ज्ञान गठरिया उतार के फेंक दी,वो ही यहाँ टिका है। इनको आजतक विश्व में कोई भी चैलेंज नहीं दे सका ज्ञान में ,सब को अंदर ही अंदर पता है कौन है ये........बस उन बेचारों का अहंकार,मिथ्या ज्ञानभिमान उनको यहाँ आने नहीं देता। और आ भी जाये तो महाराजजी के यहाँ टिक ही नहीं सकता,वो लोग वास्तव में दया के पात्र हैं जो इस समय विश्व की महानतम विभूति से अपने दंभ की वजह से दूर हैं,अभी भी समय है,अहंकार त्याग दीजिये,और कृपालु महाप्रभु को सुनिए,समझिए,और उनकी शरण ग्रहण कर उनके द्वारा निर्दिष्ट साधना करके अपने परम चरम लक्ष्य भगवदप्राप्ति तक पहुचने का प्रयास कीजिये।
राधे-राधे।
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