ऊधो !, कहियो श्याम सुजान |
पाण्डु रोग जनु भयो तुमहिं बिनु, जड़ – जंगम पियरान |
बछरन पियत न दूध सुरभि – थन, तृण न चरति गैयान |
लता गुल्म औषधि सब सूखे, यमुना जलहुँ सुखान |
गोपिन, गोपन की का कहिये, जिनके तुम हो प्रान |
वे ‘कृपालु’ भल भूलि जाहिँ मोहिँ, हौं न भूलि सक कान्ह ||
पाण्डु रोग जनु भयो तुमहिं बिनु, जड़ – जंगम पियरान |
बछरन पियत न दूध सुरभि – थन, तृण न चरति गैयान |
लता गुल्म औषधि सब सूखे, यमुना जलहुँ सुखान |
गोपिन, गोपन की का कहिये, जिनके तुम हो प्रान |
वे ‘कृपालु’ भल भूलि जाहिँ मोहिँ, हौं न भूलि सक कान्ह ||
भावार्थ – ब्रजांगनाएँ उद्धव के द्वारा श्यामसुन्दर को संदेश भेजती हुई
कहती हैं कि हे उद्धव ! उन श्यामसुन्दर से कह देना कि तुम्हारे वियोग में
ब्रज के समस्त जड़ चेतन जीवों को पाण्डुरोग सा हो गया है, सब के सब पीले पड़
गये हैं | बछड़े गायों का दूध नहीं पीते, गायें घास नहीं चरतीं, लता गुल्म
औषधि सब सूख गयीं और यमुना जल भी सूख गया फिर जिन गोपियों एवं ग्वालों के
तुम प्राण हो, उनकी दशा तो बिना कहे ही अच्छा है | ‘श्री कृपालु जी’ के
शब्दों में वे हम लोगों को भले ही भूल जायँ किन्तु हम लोग उन्हें स्वप्न
में भी नहीं भूल सकते |
( प्रेम रस मदिरा विरह - माधुरी )
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
सर्वाधिकार सुरक्षित - राधा गोविन्द समिति
( प्रेम रस मदिरा विरह - माधुरी )
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
सर्वाधिकार सुरक्षित - राधा गोविन्द समिति
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