दीनता
के आधार पर शरणागति है, भक्ति है, सबका मूल आधार है दीनता। वही छिन गई तो
क्या बचा ? फिर तुम मुँह से कीर्तन, भजन, साधन, कुछ भी करते रहो, सब गड़बड़
है। अगर तुम्हारे मन में अहंकार है, तो तुम जो भी कर्म करोगे --- संतो के
पास गए, गलत गये। प्रणाम किया उनको, गलत प्रणाम किया। उनके चरण धोकर पिए,
गलत धोकर पिये, मैं खा रहा हूँ। अजी, चारो धाम गया, गलत मार्चिंग की तुमने।
सब गलत किया, इतना दान पुण्य किया। हाँ, सब गलत किया तुमने। ये जब तुमको
फल मिलेगा न, मरने के बाद तब मालुम पडेगा, अरे! मैंने तो इतना किया और यह
उल्टा मिल रहा है हमको दण्ड।
वह दीनता नहीं थी अहंकार था । अतः तृण से बढ़कर दीन बनना है। हर समय सावधान रहना है।
------ जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज।
वह दीनता नहीं थी अहंकार था । अतः तृण से बढ़कर दीन बनना है। हर समय सावधान रहना है।
------ जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज।
No comments:
Post a Comment