साधक
को तो अपनी साधना, विशेषकर अनुभव आदि , अत्यन्त ही गुप्त रखना चाहिए। केवल
अपने सद्गुरु से ही कहना चाहिये। अपने आप भी उन अनुभवों का चिंतन करना
चाहिए, किन्तु वहाँ भी सावधानी यह रखनी चाहिये कि यह सब अनुभव महापुरुष की
कृपा से ही प्राप्त हुआ है, मेरी क्या सामर्थ्य है।
------ जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
------ जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
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