जो हरि सेवा हेतु हो,सोई कर्म बखान।
जो हरि भगति बढ़ावे,सोई समुझिये ज्ञान।।
जिस कर्म से श्रीकृष्ण की सेवा हो एवं जिस ज्ञान से श्रीकृष्ण प्रेम बढ़े। वही कर्म,सही कर्म,एवं वही ज्ञान,सही ज्ञान है।
------श्री महाराजजी।
हरि हरिजन के कार्य को,कारण कछु न लखाय।
पर उपकार स्वभाव वश,करत कार्य जग आय।।
भगवान एवं महापुरुषों के किसी भी कार्य का एक ही कारण है। वह यह कि उनका स्वभाव ही केवल परोपकार का होता है।
--------जगद्गुरू श्री कृपालुजी महाराज।