Sunday, September 4, 2011


श्याम की मंद मंद मुसकान |
बिसरत नाहिं सखी एकहुँ छिन, पीतांबर फहरान |
मटकनि-मुकुट लटनि की लटकनि, अटक्यो तन मन प्रान |
अति रस भरे नैन सों हेरत, टेरत मुरली-तान |
नित्य-विहार करत वृंदावन, मंजुल-कुंज लतान |
...
लखि ‘कृपालु’ छुटि जात समाधिन, शिव सनकादिक ध्यान ||

भावार्थ- अरी सखी ! श्यामसुन्दर की मन्द-मन्द मुस्कान एवं पीताम्बर की फहरान एक क्षण को भी नहीं भूलती | उनके मुकुट के झूमने एवं घुँघराले बालों के लटकने पर मेरा तन, मन, प्राण अटका हुआ है | वे अत्यन्त रसीली आँखों से देखते हुए मुरली की तान छेड़ते हैं | वे वृन्दावन की सुन्दर लता कुंजों में नित्य विहार करते हैं | ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं कि उन्हें देख कर शिव सनकादिक परमहंसों का समाधिस्थ ध्यान भी छूट जाता है |

(प्रेम रस मदिरा श्रीकृष्ण -माधुरी)
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
सर्वाधिकार सुरक्षित- राधा गोविन्द समिति

No comments:

Post a Comment