Friday, March 1, 2013

पुण्यपुंज हरि कृपा गोविंद राधे |
संत मिले सत्संग बिगरी बना दे ||

भावार्थ- संत मिलन के दो हेतु हैं पुण्य पुंज भी हों और हरि कृपा भी हो | जब संत मिलन हो जाय तब सत्संग से ही मनुष्य की अनादि काल की बिगड़ी बन जाती है |
 
प्रेम सम साध्य नहिं गोविंद राधे |
सद्गुरु सम न हितैषी बता दे ||

भावार्थ- जगत में जितने भी साधन हैं उन सबके द्वारा प्राप्तव्य साध्य एकमात्र प्रेम ही है | उस प्राप्तव्य को दिलाने वाले सद्गुरु के समान कोई हितैषी नहीं है |

पाप ते बचावे अरु गोविंद राधे |
हरि में लगावे सो हितैषी बता दे ||

भावार्थ- जो पाप कर्म से बचाने में सहायक बने तथा हरि के मार्ग पर चलावे वही सच्चा हितैषी है |

.राधा गोविंद गीत ( जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ).
पुण्यपुंज हरि कृपा गोविंद राधे |
संत मिले सत्संग बिगरी बना दे ||

भावार्थ- संत मिलन के दो हेतु हैं पुण्य पुंज भी हों और हरि कृपा भी हो | जब संत मिलन हो जाय तब सत्संग से ही मनुष्य की अनादि काल की बिगड़ी बन जाती है |

प्रेम सम साध्य नहिं गोविंद राधे | 
सद्गुरु सम न हितैषी बता दे ||

भावार्थ-  जगत में जितने भी साधन हैं उन सबके द्वारा प्राप्तव्य साध्य एकमात्र प्रेम ही है | उस प्राप्तव्य को दिलाने वाले सद्गुरु के समान कोई हितैषी नहीं है |

पाप ते बचावे अरु गोविंद राधे |
हरि में लगावे सो हितैषी बता दे ||

भावार्थ-  जो पाप कर्म से बचाने में सहायक बने तथा हरि के मार्ग पर चलावे वही सच्चा हितैषी है |

..................राधा गोविंद गीत ( जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ).................

 
 

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