Tuesday, January 22, 2013

अमोलक रतन मिलत बिनु मोल |
प्रेम-रतन याचत ज्ञानीजन, सुन लो कानहिं खोल |
श्याम प्रेम बिनु ब्रह्म-समाधिहुँ, मनहुँ निंब रस घोल |
तेहि बिनु कर्म, योग सब छूछो, लेहु तराजुहिं तोल |
स्वर्ग कर्म ते, सिद्धि योग ते, प्रेम बोल हरि बोल |
...
रतन ‘कृपालु’ अमोलक पायो, हमहुँ बजावत ढोल ||


भावार्थ - अमूल्य रत्न बिना मूल्य के मिलता है, यह कैसी विलक्षण बात है | इस अमूल्य प्रेम-रत्न को परमहंस लोग भी चाहते हैं, कान खोलकर सुन लो | श्यामसुन्दर के प्रेम के बिना ब्रह्मज्ञानियों की निर्विकल्प समाधि भी नीम के रस के समान कड़वी है | प्रेम के बिना कर्म एवं योगादि सब थोथे हैं, क्योंकि कर्म से स्वर्ग मिलता है एवं योग से सिद्धि मिल सकती है किन्तु प्रेम तो ‘हरि बोल’ बोलने से ही प्राप्त हो सकता है | ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं हमने तो यह अमूल्य निधि ढोल बजाकर प्राप्त कर ली |

( प्रेम रस मदिरा सिद्धान्त – माधुरी )
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
सर्वाधिकार सुरक्षित - राधा गोविन्द समिति.
अमोलक रतन मिलत बिनु मोल |
प्रेम-रतन याचत ज्ञानीजन, सुन लो कानहिं खोल |
श्याम प्रेम बिनु ब्रह्म-समाधिहुँ, मनहुँ निंब रस घोल |
तेहि बिनु कर्म, योग सब छूछो, लेहु तराजुहिं तोल |
स्वर्ग कर्म ते, सिद्धि योग ते, प्रेम बोल हरि बोल |
रतन ‘कृपालु’ अमोलक पायो, हमहुँ बजावत ढोल ||


भावार्थ - अमूल्य रत्न बिना मूल्य के मिलता है, यह कैसी विलक्षण बात है | इस अमूल्य प्रेम-रत्न को परमहंस लोग भी चाहते हैं, कान खोलकर सुन लो | श्यामसुन्दर के प्रेम के बिना ब्रह्मज्ञानियों की निर्विकल्प समाधि भी नीम के रस के समान कड़वी है | प्रेम के बिना कर्म एवं योगादि सब थोथे हैं, क्योंकि कर्म से स्वर्ग मिलता है एवं योग से सिद्धि मिल सकती है किन्तु प्रेम तो ‘हरि बोल’ बोलने से ही प्राप्त हो सकता है |  ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं हमने तो यह अमूल्य निधि ढोल बजाकर प्राप्त कर ली |


( प्रेम रस मदिरा   सिद्धान्त – माधुरी )
  जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
सर्वाधिकार सुरक्षित - राधा गोविन्द समिति

 

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